उज्जवल हिमाचल। नादौन
सनातन धर्म में छठ पूजा एक बहुत बड़ा पर्व है। संतान प्राप्ति तथा संतान की उन्नति के लिए यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस साल इसकी शुरुआत 5 नवंबर से हुई है वीरवार को पर्व के तीसरे दिन नादौन क्षेत्र में रह रहे सैंकड़ों प्रवासियों ने ब्यास नदी किनारे विधिवत पूजा अर्चना की। नहाए खाए के साथ शुरू होने वाला यह पर्व चार दिनों का होता है जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और समापन सप्तमी को सुबह भगवान सूर्य के अर्घ्य के साथ होता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य निर्जला व्रत रखकर छठ पूजा करने वाले छठ व्रतियों ने दूसरे दिन यानी खरना पर शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग एवं प्रसाद ग्रहण कर खरना किया। इसके बाद रविवार को छठ व्रती ने डूबते सूर्य को गेहूं के आटे और गुड़ व शक्कर से बने ठेकुए और चावल से बने भुसबा, गन्ना, नारियल, केला, हल्दी, सेब, फल-फूल हाथों में लेकर तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया।
इसमें शुद्धता और साफ सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता है। छठ पूजा के 4 दिनों की पूजा विधि पहला दिन नहाय खाय कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से यह व्रत शुरू होता है। इसी दिन व्रती स्नान करके नए वस्त्र को धारण करते हैं। दूसरा दिन खरना-कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना कहते हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती गुड़ से बनी खीर और रोटी का भोजन करते हैं। तीसरा दिन-इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाते हैं। टोकरी की पूजा कर व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। चौथा दिन-सप्तमी को प्रातः सूर्योदय के समय विधिवत पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं। इस त्योहार के दौरान लोग अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं। इस त्योहार के दौरान पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा होता है और एक साथ ही सूर्य देव की प्रार्थना करता है। इसमें महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं और संतान की सुख समृद्धि व दीर्घायु की कामना के लिए सूर्यदेव और छठी मैया की अराधना करती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी मैया सूर्य देवता की हैं बहन
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी मैया सूर्य देवता की बहन हैं। छठ पूजा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। छठ व्रत की कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था। उसकी पत्नी का नाम मालिनी था। राजा की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहा करते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पत्र पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के बाद रानी गर्भवती हो गई और 9 महीने के बाद रानी ने एक मरे हुए पुत्र को जन्म दिया। इस बात को सुनकर राजा बहुत दुखी हुआ संतान की दुख में वह राजा आत्महत्या करने वाला था। राजा जैसे ही आत्महत्या करने की कोशिश की उसके सामने एक दिव्य सुंदरी देवी प्रकट हो गई। देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं।जो भक्त सच्चे भाव से मेरी पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोरथ में अवश्य पूर्ण कर देती हूं।
यदि तुम भी मेरी पूजा-आराधना सच्चे मन से करोगे, तो मैं तुम्हारी सभी मनोकामना शीघ्र पूर्ण कर दूंगी। यह सुनकर राजा माता को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए उनकी बात को मान लिया। राजा और उसकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टी के दिन माता षष्टी की पूजा पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ की। उसकी पूजा और भक्ति को देखकर माता बहुत प्रसन्न हुई। माता षष्टी ने राजा की पत्नी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद ही राजा के घर में एक सुंदर बालक ने जन्म लिया। तभी से छठ का पर्व पूरी श्रद्धा के साथ भक्त मनाने लगें। शास्त्र के अनुसार छठी मैया सूर्य भगवान की बहन है।
संवाददाताः एमसी शर्मा