भारतीय सेना में जब-जब शौर्य की नई इबारत लिखी जाएगी उसमें सबसे पहले हिमाचल के वीर जवानों के नाम शुमार होंगे: सीएम

उज्जवल हिमाचल । धर्मशाला

हिमाचल प्रदेश को यूं ही वीरभूमि के नाम से नहीं जाना जाता, देवभूमि की पाक पवित्र माटी में पैदा हुये यहां के लालों ने अपने राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान के लिये कुछ तो हटकर किया होगा, वो चाहे देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ हों, कैटन बिक्रम बत्रा हों या फिर सौरभ कालिया या इनके जैसे सैकड़ों वीर जिन्होंने अपना सर कटा दिया मगर देश का सर झुकने नहीं दिया, ठीक इसी तर्ज पर धर्मशाला के वीर सपूत मेजर अशोक कुमार कपूर ने भी भारतीय सेना में कुछ ऐसा कर दिखाया है कि न केवल भारतीय सेना को अपने इस मेजर पर गर्व है बल्कि देवभूमि हिमाचल का सर भी गर्व से ऊंचा उठ गया है। दरअसल,  मेजर अशोक कुमार कपूर भारतीय सेना के वो पहले वीर सपूत बन गये हैं जो इस ब्रह्मांड की ऊंची चोटियों को सुन्दरडूंगा की बेहद दुर्गम, कठिन दुर्गाकोट चोटी जिसकी लम्बाई 5800 मीटर की है को अपने जवानों के साथ फ़तेह करके आये हैं और हिमाचल में आने पर उनका प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ख़ुद अपने हाथों से पारितोषक देकर हौसला अफ़जाई की है।

इस दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि ये प्रदेश के लिये गर्व की बात है कि भारतीय सेना में जब जब इतिहास की कोई नई इबारत लिखी जायेगी तो उसमें सबसे पहले हमारे ही वीर जवानों के नाम टॉप लिस्ट में शुमार होंगे। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपनी इस तस्वीर को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी शेयर करवाया है ताकि प्रदेश के युवा इस वीर जवान के नक्शेकदमों पर चल सकें।

काबिलेगौर है कि मेजर अशोक कुमार धर्माशाला के डाडनू के रहने वाले हैं और एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं, गद्दी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मेजर कपूर की ख़ासियत ये है कि ये साल 1999 में भारतीय सेना में बतौर सिपाही भर्ती हुये थे मगर अपने हुनर, कर्मठ मेहनत के बलबूते आज महज़ दो दशकों में ही मेजर रैंक तक पहुंच गये हैं। मेजर कपूर का मानना है कि उनका पहला प्रयास राष्ट्र को दुनिया भर में सर्वोच्च स्थान पर देखना फिर इस राष्ट्र के युवाओं का हमेशा राष्ट्र के प्रति जवाबदेही मुकर्रर करना और उन्हें हर लिहाज़ से तैयार करना मकसद है । इसके लिये वो जब जब अवकाश पर आते हैं घर में नहीं बैठते बल्कि युवाओं को एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिये तैयार करते हैं उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। ताकि युवा हमेशा अपनी देशसेवा को प्राथमिकता दे और नशे से दूर रहे।

भारतीय सेना का ये पहला दल है जिसने फ़तेह की दुर्गाकोट की चोटी

कुमाऊं रेजीमेंट के पर्वतारोही दल के 13 सदस्यों ने सुंदरहूंगा घाटी में 5800 मीटर ऊंची दुर्गाकोट चोटी को फतह कर लिया है। सेना की किसी भी टुकड़ी ने पहली बार इस चोटी पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की है। दल के सदस्यों ने विपरीत हालात का डटकर सामना किया और रात के समय चोटी पर चढ़ाई की टीम ने सूर्योदय से पहले चोटी पर तिरंगा फहराकर इतिहास रचा।

इस तारीख़ को निकला था दल

मेजर अशोक कपूर के नेतृत्व में सेना के 30 सदस्यों का पर्वतारोही दल नौ मई को रानीखेत से रवाना होकर कपकोट के खर्किया पहुंचा था 10 मई को दल खर्किया से जांतोली होते हुए कठलिया तक गया। कठलिया में दल के सदस्य मौसम से सामंजस्य बैठाने के लिए पांच दिन तक रुके, जिसके बाद बेस कैंप सुखराम रवाना हुए। सुखराम से आगे दल कैंप एक और कैंप दो के लिए रवाना हुआ। हालांकि खराब मौसम पर्वतारोहियों की राह में बाधा बना और उन्हें कंप दो से वापस बेस कैंप सुखराम लौटना पड़ा।

आसान नहीं थी राहें

18 मई को दल दोबारा कैंप एक के लिए रवाना हुआ, इस दौरान भारी बर्फबारी के बीच जवान बिना रुके चलते रहे। 19 मई को दल के सदस्यों ने रात के समय कैंप वन से ट्रैकिंग शुरू की और लगातार 30 किमी पैदल चले। पूरी रात चलने के बाद पर्वतारोहियों के दल ने 20 मई की सुबह करीब छह बजे माउंट दुर्गाकोट की चोटी को फतह करने में कामयाब हासिल की। 21 मई को दल लौट आया है। 23 मई को दल कर्मी से रानीखेत के लिए प्रस्थान करेगा।