किसानों की आय दोगुना करने में जाइका का अहम योगदान : मुख्यमंत्री

कहा, प्रदेश में 1010 करोड़ की लागत की परियोजना प्रदेश के सभी जिलों में शुरू

उज्जवल हिमाचल ब्यूराे। धर्मशाला

धर्मशाला के शीला में जाइका की ओर से हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण परियोजना कृषि विभाग में मुख्यमंत्री के तौर पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर उपस्थित रहे। इस दारौन उन्होंने जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जाइका) के तहत 1010 करोड़ की लागत की परियोजना प्रदेश के सभी जिलों में शुरू की। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी के सहयोग से फसल विविधीकरण पर 1010 करोड़ की परियोजना के दूसरे चरण की घोषणा और उसे समर्पित करते हुए प्रसन्नता हो रही है।

इस परियोजना का उद्देश्य फसल विविधीकरण के एक सफल मॉडल का प्रसार करना और परियोजना क्षेत्र में सब्जी के क्षेत्र को 2500 हेक्टेयर से बढ़ाकर 2031 तक 7000 हेक्टेयर करना है। इस परियोजना को अब हिमाचल प्रदेश के सभी 12 जिलों में लागू किया जाएगा। परियोजना के चरण-दो में चरण-एक द्वारा विकसित की गई विविध कृषि प्रणालियों के अनुभवों को सामुदायिक भागीदारी में दोहराते हुए और भारत और विदेशों में इसी प्रकार की जाइका समर्थित परियोजनाओं के साथ प्रसार करने का अवसर प्रदान होगा।

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इस परियोजना से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों वह चौथी बार आए हैं। छोटे से राज्य में जाइका परियोजना ने पहले चरण के दौरान किसानों की समृद्धि के लिए हिमाचल प्रदेश के पांच पायलट जिलों में सराहनीय कार्य किया है और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के मिशन को प्राप्त करने के लिए एक गंभीर प्रयास किया है। परियोजना ने जो माडल स्थापित किया है वह सराहनीय है और इस मॉडल को स्थापित कर किसानों की आय में निरंतर वृद्धि हुई है। उन्हें याद है कि वह मार्च 2018 में सुंदरनगर में जाईका परियोजना के संग्रह केंद्र को किसानों को समर्पित करने गए थे और बाद में उसी वर्ष मई के दौरान हमारे देश में चल रही जाइका समर्थित परियोजनाओं की राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन भी किया था।

जाईका ने हमें हमारे प्राचीन वैदिक विज्ञान में निहित ज्ञान की तरह बौद्धिक पोषण भी दिया है जिसने अगली पीढ़ीयों के लिए बेहतर दुनिया छोड़ने का ज्ञान देते हुए सतत विकास के मार्ग को प्रशस्त किया है। जापान भी हमारे प्राचीन ज्ञान को समझता है और उपचार, खाद्य प्रणालियों और अन्य विज्ञानों को अनुभवों से परिभाषित करता रहा है। हमारे प्राचीन दृष्टिकोण में पारिस्थितिक और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखते कृषि पद्धतियों को विकसित करते हुए सतत आधार पर आवश्यक उत्पादन को अगली पीढ़ियों को देते रहने की परिकल्पना और परंपराऐ दोनों देशों ने अपनाई है।

जापान को भारत की तरह परंपरावादी समाज के रूप में भी जाना जाता है, जो आधुनिक तकनीक का सर्वोत्तम उपयोग करने के अलावा अपने प्राचीन मूल्यों को भी संजोए रखे हुए हैं। भारत की तरह जापान में भी सतत व प्राकृतिक कृषि प्रणाली उतनी ही पुरानी है, जितनी हमारी वैदिक युग की है।