उज्जवल हिमाचल। मंडी
हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से विश्वविख्यात है और इस पावन धरा पर प्राचीन देवी-देवताओं का वास है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर जिला मंडी के उपमंडल करसोग में शक्तिपीठ के रूप में स्थित है। ममलेश्वर महादेव की शिवभूमि करसोग के गांव काओ में पैगोडा शैली में निर्मित महिषासुर मर्दिनी माता कामाक्षा का भव्य मंदिर विद्यमान है। ‘कामाक्षा’ शब्द का अर्थ सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली होता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कामाक्षा मंदिर का निर्माण भगवान परशुराम ने किया है। इससे पूर्व माता कामाक्षा ने इस जगह पर वास किया था और मंदिर में भगवान परशुराम ने तपस्या की है। इसी मंदिर में तप कर भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका की हत्या के दोष से मुक्ति पाई थी। इसके उपरांत भगवान परशुराम ने पंच ओमकार की काओ, ममेल, निरथ, निरमंड और श्रीखंड में 5 मंदिरों की स्थापना की थी। इन पांचों गांवों को भी भगवान परशुराम द्वारा ही बसाया गया है।
इसके उपरांत अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कामाक्षा मंदिर का जीर्णोद्धार किया था। इसका प्रमाण मंदिर में मौजूद भीम का विशालकाय ढोल है और इस ढोल को देखने का श्रद्धालुओं में खासा रोमांच देखा जाता है। संपूर्ण भारत में कामाक्षा भगवती के कुल तीन मंदिर ही मौजूद हैं और उत्तर भारत का माता कामाक्षा का एकमात्र मंदिर करसोग के काओ गांव में स्थित है। इसके उपरांत दूसरा मंदिर असम के गुवाहाटी में कामाख्या और तीसरा तमिलनाडु के कांचीपुरम में कामाक्षी मंदिर है। कामाक्षा माता के काओ और कांचीपुरम मंदिरों में तंत्र सिद्धि नहीं की जाती है। वहीं कोई भक्त सच्चे मन से माता कामाक्षा से मन्नत मांगता है तो वह अवश्य पूरी होती है। भगवान परशु राम द्वारा स्थापित पंच ओमकार में पहला स्थान वर्तमान का गांव काओ जिसे पुरातन काल में कंचनपुरी कहा जाता था। यहां सभी देवी-देवता विराजमान है, जिसमें जगदंबा, विष्णु, सूर्य भगवान, गणेश और शिव का मंदिर है। यहां दुर्गा के सभी स्वरूप है और इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में माना गया है।
मान्यतानुसार सतयुग में जब दानव महिषासुर का आतंक फैला हुआ था। महिषासुर ने ब्रह्माजी से वरदान लिया था कि सृष्टि में पैदा हुए किसी भी देवता, मानव, दानव, पशु-पक्षी और जानवर उसका वध नहीं कर सकता है। इस पर महिषासुर के भय से ब्रह्मा, विष्णु, शिव और इंद्र देवता भयभीत हो गए। महिषासुर के डर से सभी देवता हिमालय की पहाड़ियों में आकर विचार विमर्श करने लगे कि कैसे इस दानव से छुटकारा पाया जाए। उस दौरान सभी देवताओं के मन में आक्रोश पैदा हुआ और उससे एक ज्वाला पैदा हुई। इस ज्वाला ने कन्या का रूप धारण किया और यही कन्या महिषासुर मर्दिनी माता कामाक्षा हुई। इसने ही महिषासुर दानव का वध कर देवताओं की रक्षा की थी। मान्यतानुसार काओ में पहाड़ी के रूप में महिषासुर और उसकी गर्दन के रूप में मंदिर बनाया गया है। देवी महामाया द्वारा दानव महिषासुर का वध किए जाने के उपरांत सभी देवी-देवताओं ने अपने कार्यों और कामनाओं को पूर्ण करने के बाद प्रार्थना की थी कि आने वाले समय में इस स्थान पर आकर माता कामाक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करने वाला व्यक्ति पाप से मुक्त और उनके कार्यों को पूर्ण करेगा।
संवाददाता : उमेश भारद्वाज