कांगड़ा घाटी की ट्रेन पिछले 2 वर्षों से बंद, लोग हो रहे परेशान

उज्जवल हिमाचल। नूरपुर

नूरपूर लोकसभा चुनावो के दौरान मात्र कुछ सप्ताह के लिए 4 रेलगाड़ियां चलाना का उद्देश्य मात्र वोट की एक राजनीति थी। कांगड़ा रेल लाइन ने स्वतन्त्र भारत के सभी रेलवे बजटों में उदासीनता और उपेक्षा को सहन किया है। पठानकोट से जोगिंदर नगर तक चलने वाली कांगड़ा वैली कहने को तो हेरिटेज है परंतु 164 किलोमीटर रेल मार्ग की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। गौरतलब है कि पठानकोट-जोगिंदरनगर मार्ग पर 164 किलोमीटर बनी रेल लाइन का इतिहास काफी हैरान करने वाला है। कांगड़ा घाटी का निर्माण अंग्रेजी हुकूमत में महज 3 साल में पूरा कर लिया गया था, जिसमें 993 छोटे बड़े पुल हैं तथा चक्की का पुल सबसे लंबा 800 मी. है लेकिन चक्की पुल को टूटे हुए 24 महीने से अधिक का समय हो गया है और पिछले 24 महीनों से हजारों यात्री रेल गाड़ियां बहाल न होने के कारण मंहगे सफ़र की चक्की में पीस रहे हैं।

चक्की पुल को बनने में अभी और कितना समय लग सकता है यह अधिकारिक तौर पर कोई नहीं कह रहा है।
चक्की पुल बनने के बाद रेल विभाग पठानकोट से नूरपुर से पठानकोट तक तो गाड़ियां चलाने में तो असमर्थ है परंतु नूरपुर से जोगेंद्र नगर तक तो रेल गाड़ियां चलाई जा सकती हैं जबकि नूरपुर से ज्वालामुखी तक हजारों लोगों का यातायात का एकमात्र साधन रेलगाड़ी ही है लेकिन कुछेक सप्ताह तक 4 रेल गाड़ियां चलाने पर विना भारी बरसात के चलते सभी रेलगाड़ियां कों को बन्द कर दिया गया है। वर्ष 2011 – 12 के वाद चक्की पुल 12 सालों में दूसरी बार टूटा है। काफी सालों से अवैध खनन होता रहा है। लोगों की नजरों में कांगड़ा घाटी रेल लाइन चुनावी वायदे में पुरी तरह फेल हो गई है।

70 सालों में 164 किलोमीटर के रेल टै्रक पर हिमाचल प्रदेश में भाजपा में आसीन केन्द्र सरकार का यह भेदभाव नहीं और क्या है। इस रेल सेवा के ठप्प होने से पौंग बांध पयर्टको का घूमने न आना व माता के मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं को महंगा सफर करना रेलवे विभाग की लाल फीता शाही प्रशासन का स्पष्ट उदाहरण देखने को प्रदेश में मिलता है। राज्य सरकार भी इस मामले जिला कांगड़ा में आखिरकार चुप क्यों हैं।

संवाददाताः विनय महाजन

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