बेटा और बेटी का भेदभाव मिटाए समाज में संतुलन करें कायम : स्वामी विकासानंद

उज्ज्वल हिमाचल। नूरपुर

दिव्य ज्योति जाग्रित संस्थान की ओर से लदोडी में आयोजित चार दिवसीय भगवान शिव कथा के तीसरे दिन की सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं के समक्ष आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विकास आनन्द नंद जी ने भगवान शिव व माता सती जी के प्रसंग का गुणगान बड़े मार्मिक ढंग से किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से माता सती जी भगवान शिव का कहना ना मानकर दक्ष की यज्ञशाला में भगवान शिव का अपमान सहन ना कर अपने शरीर का परित्याग कर देती हैं। फिर अगला जन्म हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेती हैं। हिमालय नगर में पुत्री के जन्म पर बहुत ही धूमधाम से उत्सव मनाए जाते हैं।

स्वामी जी ने आगे संबोधन करते हुए कहा कि वर्तमान समय में लोगो के दिल पुत्र और पुत्री में भेदभाव की भावना जन्म लेती है ।बहुत सारे देश के राज्यों में अभी भी कन्या भ्रूण हत्या जैसा पाप होता है परन्तु लोग बेटी को बोझ समझते हैं ।परंतु हमारे महापुरुष हमें समझाते हुए कहते हैं कि पुत्री कोई बोझ नहीं है ।नारी जननी है जिसने ऐसे ऐसे भक्तों को जन्म दिया। जिन्होंने समाज में अपना नाम रोशन किया। कुछ लोगों का विचार हैं कि यदि पुत्र नहीं होगा तो हमारा अंत में कल्याण नहीं होगा जबकि शास्त्रों में यह कहा गया है कि पुत्र होने या ना होने से कल्याण नहीं। यदि जीवन में ज्ञान नहीं तो व्यक्ति का उद्धार, कल्याण नहीं हो सकता।ज्ञान का अर्थ ईश्वर को तत्व स्वरूप से जानना है जिसके लिए जीवन में परम आवश्यकता होती है सतगुरु की सदगुरुआगमन के पश्चात ही व्यक्ति अपने घट में ईश्वर के ब्रह्म स्वरूप का दर्शन करता है।

स्वामी जी ने मां पार्वती जी के भक्ति प्रसंग का व्याख्यान किया जिसमें उन्होंने समझाया कि देव ऋषि नारद जी के द्वारा मां पार्वती भगवान भोलेनाथ जी की भक्ति करती है।उसी प्रकार आज हमें हमारे जीवन में अवश्यकता है पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की जिससे जीव आत्मा रूपी पार्वती जी शिव रुपी ईश्वर का मिलन हो सके। कार्यक्रम के अंत में स्वामी मेघानंद, महात्मा वरिंदर, महात्मा जसपाल द्वारा सुमधुर शिवामहिमा का गुणगान किया गया जिसे सुन भक्त जन झूम उठे कार्यक्रम में क्षेत्र कई गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहे कथा को विराम प्रभु की मंगल पावन आरती के द्वारा किया गया।

संवाददाताः विनय महाजन

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