महामारी से मरने वाले मरीजाें का इस मशीन से हाेगा बेझिजक संस्कार

उमेश भारद्वाज। सुंदरनगर

वैश्विक महामारी कोरोना का संकट भारत में अपनी चरम सीमा पर पहुंचने लग गया है। आलम यह है कि देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 90 हजार को पार कर गई है और इससे मरने वाले लोगों का आंकड़ा 3 हजार को छूने वाला है। वहीं, इस वायरस से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर प्रशासन द्वारा भी वैकल्पिक व्यवस्था की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके अंतर्गत शव को जलाने के लिए सुंदरनगर के मुख्य शमशान घाट चांदपुर में मौजूद वुडन गेसिफायर (Wooden Gasifier) एक कारगर कदम साबित हो सकता है।

इसको लेकर चांदपुर शमशान घाट कमेटी ने भी प्रशासन को इसका उपयोग करने की हामी भर दी गई है। लगभग 20 वर्ष पहले हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर में सर्वप्रथम स्थापित इस वुडन गेसिफायर मशीन में लोगों द्वारा शव को जलाने के लिए कोई रूचि नहीं दिखाई गई, लेकिन इस विकट परिस्थिति में यह मशीन एक सबसे बड़ी सुविधा के तौर पर सामने आ सकती है। बेशक कोरोना पीड़ित का अंतिम संस्कार करते समय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा पूरी सावधानी बरती जाती है, लेकिन इसके बावजूद एक गलती संक्रमण फैला सकती है।

ऐसे में वुडन गेसिफायर मशीन बहुत कम लकड़ी के साथ शव को बिना प्रदूषण और वायरस फैलाने के डर से जला सकता है। वुडन गेसिफायर पर जानकारी देते हुए चांदपुर शमशान घाट कमेटी के मुख्य संरक्षक नरेंद्र गोयल ने कहा कि चांदपुर शमशान घाट में लगभग 20 वर्ष पहले इस वुडन गेसिफायर को मुंबई की एक कंपनी द्वारा पूर्ण रूप से निःशुल्क स्थापित किया गया था। उन्होंने कहा कि इस गेसिफायर में परंपरागत तरीके की बजाय मात्र 60 किलोग्राम लकड़ी के गुटकों से शव का दाह संस्कार हो जाता है।

इस वुडन गेसिफायर को प्रदेश में सर्वप्रथम सुंदरनगर शमशान घाट और इसके उपरांत शिमला के संजोली शमशान घाट में स्थापित किया गया था। उन्होंने कहा कि इसमें शव जलाने के उपरांत अस्थियों के सिवाए अन्य कोई अवशेष नहीं बचता है। नरेंद्र गोयल ने कहा कि स्थानीय लोगों द्वारा इस वुडन गेसिफायर का ज्ञान नहीं होने के कारण इसमें शव को जलाने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई गई और इसमें अधिकतर लावारिस लाशों का दाह संस्कार ही हुआ है। उन्होंने प्रशासन से इस वुडन गेसिफायर को उपयोग करने को लेकर पूर्ण सहयोग देेेने के लिए आश्वस्त किया गया है।

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क्या है वुडन गेसिफायर, कैसे करता है कार्य
सुंदरनगर के चांदपुर स्थित मुख्य शमशान घाट में शव को जलाने के लिए पिछले 20 वर्षों से धूल फांक रही वुडन गेसिफायर मशीन लोगों की इसके कार्य क्षमता का ज्ञान नहीं होने के कारण कम ही उपयोग में लाई जाती है। वुडन गेसिफायर में शव का दाह संस्कार बिना किसी प्रदूषण के हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार ही किया जाता है। इसमें सिर्फ लगभग दो घंटे से कम समय में शव दहन हो जाता है। इसके अलावा मशीन में शव को जलाते समय फरनस और पंखे की सहायता से बराबर आग लगती है, जिससे किसी भी प्रकार का कोई धुंआ आदि वातावरण में नहीं फैलता है। इसमें शव दहन के दौरान 40 फुट लंबी चिमनी के माध्यम से किसी भी प्रकार के अवशेष को बाहर निकाल दिया जाता है। वहीं, शमशान घाट कमेटी द्वारा इस वुडन गेसिफायर से दाह संस्कार करने के दौरान बिजली चले जाने के समय जनरेटर का प्रबंध भी है।

कम ईंधन और खर्च में हिंदू मान्यतानुसार होता है शव दहन
वुडन गेसिफायर के माध्यम से इसमें परपंरागत तरीके से शव को जलाने को लेकर उपयोग में लाए जाने वाली लगभग 4 क्विंटल लकड़ी के बजाए मात्र 60 किलोग्राम लकड़ी के गुटकों से ही दाह संस्कार किया जा सकता है। वहीं, वुडन गेसिफायर में 3500 से 4 हजार रुपए खर्च आने के बजाए लगभग आधे खर्चे पर मात्र 1800 रुपए में शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। इसके अलावा इसमें हिंदू धर्म की मान्यतानुसार दाह संस्कार विधि में ही संस्कार किया जाता है।