भरमौर से आई है मां भभौरी, सिकंदर धार की ऊंची चोटी पर है विराजमान

Mother Bhabhori has come from Bharmour, sits on the high peak of Sikandar Dhar
भरमौर से आने के कारण इसका नाम बदलते वक्त के साथ भभौरी हो गया

जोगिंद्रनगर: जोगिंद्रनगर उपमंडल के अंतर्गत लडभड़ोल तहसील की ग्राम पंचायत खुड्डी स्थित भभौरी धार जिसे सिकंदरधार के नाम से भी जाना जाता है कि ऊंची चोटी में स्थापित मां भभौरी का प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि भभौरी धार जिसे सिकंदरधार भी कहते हैं में राजाओं का बेहड़ा या चौकी हुआ करती थी। इसी दौरान राजा अपने साथ भभौरी मां को पिंडी रूप में यहां लेकर आए थे। भरमौर से आने के कारण इसका नाम बदलते वक्त के साथ भभौरी हो गया।

भभौरी मां मंडी व कांगड़ा जनपद के लोगों की कुल देवी भी है तथा इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है।
किंवदंती है कि यह प्राचीन मंदिर हजारों वर्ष पुराना है तथा इसका अपना एक इतिहास है। यह भी कहा जाता है कि यूनानी सम्राट सिकन्दर ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपने विजयी अभियान के दौरान वे अपनी सेना के साथ ब्यास नदी के तट तक पहुंचे थे। ऐसे में इस स्थान को सम्राट सिकंदर के साथ जोड़ते हुए इस धार को सिकंदर धार के नाम से भी जाना जाता है। जहां तक प्राचीन राजाओं के साम्राज्य की बात करें तो मंदिर से लगभग 300 या 400 मीटर की दूरी पर राजाओं की चौकी या बेहड़ा हुआ करता था।

जिस स्थान पर राजाओं का बेहड़ा स्थापित था वह भभौरी धार की सबसे ऊंची जगह है। लेकिन बीतते समय के साथ अब यह स्थान खंडहर हो चुका है तथा यहां पर केवल पत्थरों के ही ढ़ेर रह गए हैं। परन्तु इस स्थान को देखते ही प्राचीन समय का इतिहास मानो एक बार फिर जीवंत हो उठता है।

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मंदिर के आसपास एक इंसानी बस्ती भी हुआ करती थी लेकिन यह क्षेत्र अति दुर्गम होने के कारण अधिकतर लोगों ने यहां से पलायन कर लिया है तथा साथ लगते गांवों खुड्डी, गाहरा इत्यादि स्थानों पर जाकर बस गए हैं। वर्तमान में अभी भी स्थानीय लोगों की जमीन भभौरी मंदिर के आसपास है तथा महज एक या दो परिवार ही यहां रह रहे हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से है खूबसूरत, सर्दियों में होता है बर्फ का दीदार

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से बात करें मां भभौरी का यह प्राचीन स्थान बेहद खूबसूरत है। मंदिर व आसपास क्षेत्र की ऊंचाई लगभग 1500 से 1800 मीटर के करीब है। यहां पर सर्दियों में बर्फबारी भी होती है। यह स्थान घने बान, बुरांस व काफल के पेड़ों से ढक़ा हुआ है। इस स्थान से एक तरफ हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला का बेहद खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है तो दूसरी तरफ कांगड़ा व मंडी घाटी का सुदूर तक दृश्य देखते ही बनता है। शहरों की आपाधापी से दूर यहां आकर मां के दर्शनों के साथ-साथ मन को बेहद सुकून मिलता है। यह स्थान घने पेड़ों से ढक़ा होने के कारण यहां जंगली जानवर भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं।

कैसे पहुंचे मां भभौरी के मंदिर में

मां भभौरी के प्रांगण तक खुड्डी गांव से लगभग 3 किलोमीटर एक कच्ची सडक़ पहुंच चुकी है। लेकिन इस सडक़ पर अधिक ऊंचाई, संकरीघाटी तथा कच्ची होने के कारण वाहन से सफर काफी खतरनाक रहता है। ऐसे में श्रद्धालु चाहें तो खुड्डी से लगभग 2 किलोमीटर का पैदल सफर करते हुए प्रकृति के खूबसूरत नजारों को समेटते हुए भी मां के प्रांगण तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा चलहारग पंचायत की ओर से भी पैदल मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

लेकिन घना जंगल होने के चलते जानवरों का भी खतरा बना रहता है। यह मंदिर उपमंडल मुख्यालय जोगिन्दर नगर से वाया ऐहजु लगभग 30 किलोमीटर तथा वाया बल्ह, मैन भरोला 20 किलोमीटर है जबकि तहसील मुख्यालय लडभड़ोल से लगभग 18 किलोमीटर तथा शिव नगरी बैजनाथ से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।

धार्मिक के साथ-साथ पैराग्लाइडिंग पर्यटन की संभावनाएं हैं मौजूद

धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से यदि इस क्षेत्र को विकसित किया जाए तो यह जोगिन्दर नगर उपमंडल का एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बन सकता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होने के कारण ट्रैकिंग के लिए भी एक अच्छा स्थान है। साथ ही भभौरी धार से पैराग्लाइडिंग की संभावनाओं पर कार्य किया जाए तो बीड़-बिलिंग के बाद इस क्षेत्र को साहसिक पर्यटन की दृष्टि से भी आगे बढ़ाया जा सकता है।

फिलवक्त मंदिर कमेटी ने यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सराय का भी निर्माण करवाया है। इसके अलावा यहां पर खुला मैदान भी है जहां पर आषाढ़ माह में मां भभौरी का मेला लगता है। मेले के दौरान यहां पर विभिन्न खेल स्पर्धाओं का भी आयोजन किया जाता है।

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