उज्जवल हिमाचल। कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल डॉ राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में हालात बद से बदतर हो रहे हैं। टांडा मेडिकल कॉलेज में स्त्री रोग विभाग की हालात इतनी ज्यादा बदतर हो गई है कि गर्भवती महिलाओं के लिए यहां कोई सुविधा मौजूद नहीं हैं। जहां अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर हिमाचल सरकार बड़े दावे करती हैं वहीं इन दावों को खोखला साबित करता टांडा अस्पताल गर्भवती महिलाओं को बेड तक मुहईया नहीं करवा पा रहा है। हालात इतने खराब हो चुके हैं की कई गर्भवती महिलाओं को इस कड़कड़ाती ठंड के बीच स्त्री रोग विभाग के वार्ड की गैलरियों में रखे स्ट्रेचर पर लेटाया जा रहा है, लेकिन वहीं कुछ गर्भवती महिलाओं को वह स्ट्रेचर भी नसीब नहीं हो रहे हैं।
इन गर्भवती महिलाओं के साथ आए तीमारदार बार-बार डॉक्टरों और अस्पताल स्टाफ से बेड की मांग कर रहे हैं लेकिन अस्पताल में इतने बेड पर्याप्त ही नहीं है की इन गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को स्ट्रेचर पर या यूं ही कहीं लेटना न पड़े। टांडा अस्पताल में इस समय 20 से 25 महिलाएं लगभग स्ट्रेचर पर हैं क्योंकि अस्पताल प्रबंधन उन्हें बेड उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है।
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जनवरी माह का मौसम है प्रदेशभर में शीतलहर प्रचंड है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब एक गर्भवती महिला को इस कड़कड़ाती ठंड में एक बेड ही न मिले तो उससे न सिर्फ उस महिला की जान खतरे में होगी बल्कि नवजात शिशु के लिए भी अनहोनी के संकेत बने रहेंगे। यदि ऐसे हालातों में किसी गर्भवती महिला के साथ कोई अनहोनी होती है तो इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? गर्भवती महिलाओं के साथ आए परिजन में जहां अस्पताल प्रबंधन के लिए रोष है वहीं दूसरी ओर इन महिलाओें और नवजातों की चिंता भी उन्हें लगातार सताई जा रही है।
बता दें की टांड़ा अस्पताल प्रदेश में दूसरे नंबर पर आता है। यहां पर कांगड़ा सहित मंडी, चंबा जिले से भी मरीज यहां आते हैं या रेफर किए जाते हैं। ऐसे में यहां सुविधाओं का इतना बड़ा आभाव जहां लोगों की जान से खेलने का कारण बनता है वहीं अस्पताल प्रबंधन और सरकार की पोल खोल कर रख देता है। प्रदेश के इतने बड़े अस्पताल में जब गर्भवती महिलाओं को एक बेड तक नहीं मुहईया हो पा रहा है तो आखिर सरकार किन स्वास्थय सुविधाओं के नाम पर दंभ भरती है?
वहीं जब इस बाबत टांडा अस्पताल के एमएस डॉ मोहन से बात की गई तो उन्होंने बताया कि टांडा अस्पताल में स्त्री रोग विभाग के लिए सिर्फ 60 बेड का प्रावधान है जबकि मरीजों की संख्या ज्यादा है। उन्होंने बताया की नजदीकी अस्पतालों द्वारा बिलकुल भी सहयोग नहीं किया जा रहा है। नॉर्मल डिलीवरी के मामलों को भी नजदीकी अस्पतालों द्वारा टांडा रेफर कर दिया जाता है। जबकि पहले से ही जटिल प्रसव के मामले टांडा अस्पताल में ही उपचाराधीन होते हैं। उन्होंने बताया कि प्रसव के मामले इतने ज्यादा हो गए हैं कि उन्हें मजबूरन महिलाओं को स्ट्रेचर पर सुलाना पड़ता है। डॉ मोहन ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा सरकार के सक्षम मामला लाया गया है और जल्द ही स्त्री रोग विभाग के 200 बेड की बिल्डिंग तैयार हो रही है, जिससे आने वाले समय में इस समस्या से लोगों को निजात मिलेगी।