भांग की खेती को कानूनी वैधता प्रदान करने पर विचार कर रही सुक्खू सरकार

राज्य की आर्थिकी को मिलेगा संबल

Sukhu government considering giving legal validity to cannabis cultivation

उज्जवल हिमाचल। शिमला

भांग की खेती का इतिहास लगभग 12 हजार वर्ष पुराना है और इसे मानव द्वारा उगाई गई सबसे पुरानी फसलों में गिना जाता है। सदियों से यह खुले में प्राकृतिक तौर पर उगती रही है। एन.डी.पी.एस. एक्ट के तहत राज्यों को औषधीय उपयोग के लिए भांग की खेती (cannabis cultivation) को साधारण अथवा विशेष आदेशों के तहत अनुमति प्रदान करने की शक्तियां निहित की गई हैं। यह अनुमति केवल भांग के रेशे अथवा इसके बीज या बागवानी और औषधीय उपयोग के लिए ही दी जा सकती है। औद्योगिक उद्देश्य से इसका उत्पादन देश में कानूनी रूप से वैध है। नारकोटिक ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक सब्स्टांसिज पर राष्ट्रीय नीति में भांग को जैव ईंधन, रेशे तथा उच्च गुणों के तेल के स्रोत के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।

वर्तमान प्रदेश सरकार हिमाचल में भांग की खेती को कानूनी रूप से वैधता प्रदान करने पर विचार कर रही है। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भांग की वैध खेती की संभावनाओं का पता लगाने के लिए एक समिति गठित करने के निर्देश दिए हैं। प्रदेश के लिए राजस्व जुटाने के साथ ही यह अपने औषधीय गुणों के कारण रोगियों के उपचार में लाभप्रद है तथा इसका औद्योगिक क्षेत्र में भी उपयोग किया जा सकेगा। भांग की खेती वर्जित होने से कुछेक क्षेत्रों में चोरी-छिपे इसकी खेती की जा रही है। ऐसे में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसके आंतरिक तौर पर उत्पादन को भी बढ़ावा मिला। इससे उत्पादकों को नवीनतम तकनीकों के प्रयोग की संभावनाएं बढ़ने के साथ ही उन्हें कानून से बचने का रास्ता भी मिलता रहा है। यह उत्पादक अधिक नियंत्रण, वैधता और विशिष्टता के साथ भांग की खेती संचालित करते रहे हैं। वर्तमान में कुछेक राज्यों में भांग की वैध खेती करने वालों को आंतरिक अथवा खुले में खेती करने का विकल्प प्रदान किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार भांग के औषधीय उपयोग की संभावनाओं पर सावधानीपूर्वक (carefully) विचार कर रही है और इसके लिए विधायकों की एक पांच सदस्यीय समिति गठित की गई है। यह समिति राज्य में भांग की खेती से जुड़े प्रत्येक पहलु का विस्तृत अध्ययन करेगी। यह समिति विभिन्न क्षेत्रों में अवैध तौर पर संचालित की जा रही भांग की खेती के स्थलों का भी दौरा करेगी और एक माह में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी। उन्होंने कहा कि समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के आधार पर ही प्रदेश सरकार इस बारे में कोई निर्णय लेगी।

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मुख्यमंत्री ने विशेष तौर पर कहा कि राज्य सरकार भांग की पत्तियों और इसके बीजों के उपयोग से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के बाद ही इस बारे में कोई नीति अथवा कानून बनाने पर विचार करेगी। केन्द्र सरकार ने भी राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछेक जिलों में भांग की खेती को वैध दर्जा प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में भी औद्योगिक उपयोग के लिए भांग की खेती की जा रही है। एन.डी.पी.एस. एक्ट के अन्तर्गत राज्यों को भांग की खेती और इसके परिवहन का अधिकार प्रदान किया गया है।

राज्य सरकार इस बारे में अंतिम निर्णय लेने से पूर्व नियामक उपायों सहित सभी पहलुओं पर विस्तृत तौर पर गहन विचार करेगी और जिन राज्यों ने इसे कानूनी वैधता प्रदान की है, उसका भी अध्ययन किया जाएगा। देश में कई राज्यों में भांग की खेती को कानून की परिधि में रखा गया है। उत्तराखंड वर्ष 2017 में भांग की खेती को वैधता प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य बना। इसके अतिरिक्त गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी भांग की नियंत्रित खेती की जाती है। इसी प्रकार उरुग्वे, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रिया, बैल्जियम और चेक गणराज्य सहित यूरोपीय यूनियन के कुछ देशों में भी भांग की नियंत्रित खेती (controlled cultivation) की अनुमति प्रदान की गई है।

उल्लेखनीय है कि संसद ने वर्ष 1985 में भांग को एन.डी.पी.एस. अधिनियम के अन्तर्गत परिभाषित किया है, जिसके अन्तर्गत भांग के पौधे से रेज़िन (राल) और फूलों को निकालने पर प्रतिबंध लगाया गया है। परंतु यह कानून भांग की खेती की विधि और औषधीय एवं वैज्ञानिक उद्देश्यों से इसके अधिकतम उपयोग पर भी प्रकाश डालता है। इस अधिनियम की धारा-10(क)(iii) राज्यों को भांग के पौधों की खेती, उत्पादन, स्वामित्व, परिवहन, खपत, उपयोग और खरीद एवं बिक्री (चरस को छोड़कर) इत्यादि पर नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।

ब्यूरो रिपोर्ट शिमला

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