जल्दी चालक बनने की चाहत और पैसों की भूख, दे रहीं मौत को दस्तक!

The desire to become a fast driver and the hunger for money are giving death a knock!
जल्दी चालक बनने की चाहत और पैसों की भूख, दे रहीं मौत को दस्तक!

शिमला: जल्दी चालक बनने की चाहत और पैसों की भूख लाखों जानें दांव पर लगा रही है। मात्र 20 दिन में वाहन चलाना सीखने के बाद लोग स्वयं को उस्ताद मान रहे हैं। ऐसे लोग अकेले गाड़ियां सड़क पर दौड़ा खुद के साथ दूसरों की जिंदगी से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। देवभूमि हिमाचल में ड्राइविंग सिखाने वाले पंजीकृत स्कूलों की संख्या 300 से अधिक है, लेकिन इससे 10 गुणा अधिक फर्जी स्कूल चल रहे हैं।

पैसे बचाने के चक्कर में निजी गाड़ियों में अतिरिक्त क्लच, ब्रेक और एक्सीलेटर लगाकर अधूरे चालक बनाए जा रहे हैं। ऐसे चालक सड़क हादसों का कारण बनते हैं।

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हिमाचल प्रदेश में 20 लाख से अधिक वाहन पंजीकृत हैं। ड्राइविंग सीखने के साथ सिविक सेंस होना बहुत आवश्यक है और यह बेहतर ड्राइविंग स्कूल और माहौल से ही मिल सकती है। वर्तमान में जो युवा ड्राइविंग स्कूल से सीखकर आ रहे हैं उन्हें नियम और कानून का तो ज्यादा पता ही नहीं होता है। साइन बोर्ड तो दूर कई चालकों को यह पता नहीं होता कि चढ़ाई चढ़ रहे वाहन को पहले जगह दी जाती है।

ड्राइविंग स्कूलों में गाड़ी सीखाने के लिए तीन से पांच हजार रुपये मासिक लिए जा रहे हैं। इसमें 20 से 22 दिन छह किलोमीटर (हर रोज) गाड़ी चलवाई जाती है। मसलन ड्राइविंग सीखने वाले को सीट पर बैठाकर स्टीयरिंग थमा दिया जाता है। उसे न तो बैठने और न ही दूसरे नियम पढ़ाए जाते हैं। ऐसे चालक एक माह बार सड़कों पर वाहन दौड़ाते देखे जा सकते हैं, लेकिन खुद के साथ दूसरों की जिंदगी दांव पर लगी रहती है।

लर्निंग लाइसेंस वाला व्यक्ति अकेले गाड़ी नहीं चला सकता है। उसे वाहन के आगे और पीछे “एल” यानी लर्निंग का चिह्न लगाना अनिवार्य होता है। हालांकि देखने में आता है कि इस नियम का भी पालन नहीं होता है। नियमों के अनुसार जब तक स्थायी ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बन जाता, तब तक वाहन चलाते समय स्थायी लाइसेंस धारक और अनुभवी चालक का साथ होना आवश्यक है।

सही तरीके से ड्राइविंग सीखने के लिए तीन माह आवश्यक होते हैं। एक माह में ठीक से नहीं सीख सकते। स्कूल स्तर पर इसे आवश्यक विषय के तौर पर बच्चों को पढ़ाना आवश्यक है। थ्यूरी स्कूल में पढ़ सकें और ड्राइविंग स्कूल में प्रेक्टिकल कर वाहन चलाना पूरी तरह से सीखा जा सकता है। पंजीकृत ड्राइविंग स्कूलों की अपेक्षा प्रदेश में दस गुणा से ज्यादा फर्जी चल रहे हैं। कुछ तो वाहन चलाना सिखाते भी नहीं, बस पैसे कमा रहे हैं। इस कारण सबसे ज्यादा सड़क हादसे हो रहे हैं। ड्राइविंग स्कूलों संचालक भी पैसे ज्यादा कमाने के चक्कर में कई घरों को जिंदगी भर के घाव देते हैं।
खेमचंद शर्मा, संचालक ड्राइविंग स्कूल शिमला

संवाददाताः ब्यूरो शिमला

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