निजी स्कूलों में बच्चों के खेलने का मैदान तक नहीं, वहां कैसे होगा बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास!

निजी स्कूलों में बच्चों के खेलने का मैदान तक नहीं वहां कैसे होगा बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास!

उज्जवल हिमाचल। हमीरपुर
कहा जाता है कि खेलकूद से बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास होता है लेकिन ऐसे स्कूल हमीरपुर जिला में बहुत से मिल जाएंगे। जिनके पास अपना स्कूल का ग्राउंड तक नहीं है, तो उन बच्चों का विकास कैसे होगा। यह सवाल तो उठना लाजमी है।

सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक निजी स्कूलों में बच्चों को खेलने के लिए मैदान होना अनिवार्य है लेकिन हमीरपुर जिला में ऐसे कई स्कूल है, जिनमें मैदान की कमी है। सवालिया निशान अब शिक्षा विभाग पर भी उठते हैं कि बिना मूलभूत सुविधाओं के स्कूलों को चलाने की परमिशन विभाग द्वारा किस तरह से दी गई है।

सरकार की गाइडलाइंस को ताक पर रखकर इन स्कूलों को मान्यता दी गई है, यह साफ जाहिर हो रहा है। वहीं, हमीरपुर शहर की बात करें तो कुछ स्कूल तो ऐसे हैं जिनके नीचे दुकानें चल रही हैं और ऊपर स्कूल चल रहे हैं और साथ लगती दुकानों में धूम्रपान का सामान बेचा जा रहा है।

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100 से भी ज्यादा ऐसे मान्यता प्राप्त स्कूलों को संबंधित विभाग ने हरी झंडी दे रखी है, जिनके पास मूलभूत ढांचे तक नहीं है। ऐसे स्कूल जहां ग्राउंड तक स्कूल के पास नहीं है, जो केवल घरों में ही चल रहे हैं। प्रारंभिक शिक्षा विभाग की नाक तले हमीरपुर शहर में ऐसे स्कूल को मान्यता दी गई है।

यही नहीं हमीरपुर शहर में कुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जो श्मशान घाट के नजदीक ही खोल दिए गए हैं। एक तरफ श्मशान घाट में चिता जलाई जाती है, तो दूसरी तरफ बच्चों की क्लास लगती है। जिसका सारा धुआं क्लासरूम तक पहुंचता है। ऐसे में न केवल शिक्षा विभाग पर सवालिया निशान उठते हैं बल्कि स्कूल प्रबंधन मात्र फीस वसूलने को लेकर नौनिहालों के भविष्य से भी खिलवाड़ करते दिख रहे हैं।

जब इस बारे में प्रारंभिक शिक्षा विभाग के उपनिदेशक कुलभूषण राकेश से पूछा गया तो वह भी पल्ला झाड़ते हुए नजर आए। उन्होंने बताया कि मूलभूत सुविधाओं को मान्यता देते समय देखा जाता है। उन्होंने माना कि कई स्कूलों के पास खुद का ग्राउंड तक नहीं है और वह सरकारी स्कूल के ग्राउंड का उपयोग किया जाता है।

संवाददाताः विजय ठाकुर

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