उज्जवल हिमाचल। नूरपुर
नूरपुर हिमाचल प्रदेश जिला कांगड़ा की ऐतिहासिक बाथू दी लड़ी के झील से बाहर निकलते व विदेशी पक्षियों की आमदन बढ़ते ही पर्यटक मोटरबोट में घूमने के लिए इसका लुत्फ उठा रहे हैं। अभी तक मात्र एक बोट ही पर्यटकों को घुमने का सहारा क्षेत्र में बना हुआ है। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने जिला कांगड़ा को राज्य की पर्यटन राजधानी के रूप में विकसित करने की प्रतिबद्धता जाहिर कर रही है। मगर अभी तक भी पौंग झील व मध्य स्थित “रैंसर दी गढ़ी” आईलैंड को पर्यटन के मानचित्र पर कोई पहचान नहीं मिल पाई है। पौंग वांध व “रैंसर दी गढ़ी” आईलैंड मे घूमने आ रहे पर्यटकों को कोई सुविधाए न मिल पाने कर कारण आखिरकार टूरिस्टों को मायूस वापिस लोटना पड़ रहा है। रैंसर दी गढ़ी में वन्य प्राणी विभाग द्वारा एक विश्रामगृह बनाया गया है तथा इसके चारों तरफ फेंसिंग भी की गई है।
रैंसर दी गढ़ी को मिनी गोआ के नाम से भी हिमाचल प्रदेश में जाना जाता है लेकिन यह अपनी खास पहचान अभी तक नहीं बना पाया है। इस स्थल तक पहुंचने के लिए पर्याप्त मोटरबोट नहीं हैं तथा रैंसर दी गढ़ी में पर्यटकों को खाने-पीने की कोई उचित सुविधा नहीं है। यह ऐसी जगह है जिसके चारों तरफ वर्षभर पानी भरा रहता है। पौंग झील का जलस्तर भले कितना भी हो जाए लेकिन यह गढ़ी पानी में डूबती नहीं है। इसको पर्यटन के मानचित्र पर लाने की कोई पहल आज तक किसी भी सरकार ने नहीं की। दूरदराज से पर्यटक यहां आते हैं लेकिन सुविधाओं का अभाव होने के कारण सरकार मायुस वापिस लोट जा रहे हैं।
बुनियादी सुविधाओं का विकास चिन्हित क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कॉटेज, पूल, स्पा और रेस्तरां जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाना आज के दौर में काफी महत्वपूर्ण है तथा साथ ही, जल क्रीड़ा, साहसिक खेल, स्थानीय भोजन, संस्कृति, और कला को भी प्रमोट किया जाना जरूरी है। इस तरफ सरकार एक कदम भी अभी तक इस क्षेत्र में आगे नहीं बढा सकी है ।इन क्षेत्रों के विकसित हो जाने के बाद देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए यहां पहुंचना आसान होगा। क्षेत्र वासियों ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह से आग्रह किया कि इस मामले में जनहित में उचित कदम उठाए। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में बाथू की लड़ी के चारों तरफ पानी ही पानी है तथा वन्य प्राणी विभाग ने पर्यटकों के लिए एक मोटरबोट लगा दी है जिसके माध्यम से बाथू दी लड़ी तक पर जा रहे हैं। मोटरबोट घुमाने की एवज में 3 हजार रुपए शुल्क निर्धारित किया गया है। प्रतिदिन सैंकड़ों की तादाद में पर्यटक झील में बाथू दी लड़ी को निहारने व प्रवासी परिंदों को देखने के लिए आ रहे हैं। गत वर्ष भी वन्य प्राणी विभाग को मोटरबोट से लाखों रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था।
संवाददाता : विनय महाजन