उज्ज्वल हिमाचल। शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण से प्राप्त प्रतिकूल कब्जा (एडवर्स पॉजेशन) उत्तराधिकार के योग्य है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर की अदालत ने इससे जुड़े एक मामले में राज्य सरकार की अपील को खारिज किया और जिला अदालत के निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें प्रतिवादी सुकन देवी को उनके मृत पति की ओर से सरकारी भूमि पर किए गए अतिक्रमण पर प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अधिकार प्राप्त करने का हकदार माना गया था। अदालत के इस निर्णय के बाद सुकन देवी को संपत्ति पर कब्जा बनाए रखने और राजस्व रिकॉर्ड में उसका नाम दर्ज करने का अधिकार मिल गया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के रविंद्र कौर ग्रेवाल बनाम मनजीत कौर एवं अन्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि प्रतिकूल कब्जा विरासत में मिल सकता है।

कोर्ट ने पाया कि राज्य के राजस्व अधिकारियों के ज्ञान में 1963 से ही प्रतिवादी के मृत पति (गुरदास) का अनधिकृत कब्जा था और 30 साल पूरे होने के बाद यह एक वैध प्रतिकूल कब्जा बन गया था, जो उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को हस्तांतरणीय था। सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के संबंध में न्यायालय ने स्पष्ट राजस्व अधिनियम की धारा 46 का उल्लेख किया जो राजस्व रिकॉर्ड में प्रविष्टि से प्रभावित व्यक्ति को घोषणात्मक डिग्री के लिए मुकदमा दायर करने का अधिकार प्रदान करती है।

राज्य सरकार की ओर से अतिक्रमण से अर्जित कब्जे के उत्तराधिकार को लेकर यह दूसरी अपील दायर की गई थी। राज्य ने बिलासपुर के जिला न्यायाधीश की ओर से 12 अक्टूबर 2015 को पारित निर्णय और डिक्री को चुनौती दी थी जिसमें सिविल जज जूनियर डिविजन की ओर से 30 अप्रैल 2015 को पारित फैसले की पुष्टि की गई थी। प्रतिवादी सुकन देवी का तर्क था कि उनके पति गुरदास ने 13 जनवरी 1963 से हिमाचल प्रदेश राज्य की भूमि पर कब्जा कर एक आवासीय घर का निर्माण किया है।
उन्होंने दावा किया कि 30 साल तक निरंतर शांतिपूर्ण और बिना किसी रुकावट के प्रतिकूल कब्जे के बाद, 13 जनवरी 1993 को उनके पति को भूमि पर स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो गया था। गुरदास की मृत्यु 18 जून 2008 को हुई। उसके बाद सुकन देवी उस संपत्ति पर काबिज थी। प्रतिवादी ने राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम मालिक के रूप में दर्ज करने की मांग की थी।





