फाइजर के बाद अब सीरम कंपनी ने भी मांगी वैक्सीन की इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति

उज्जवल हिमाचल। नई दिल्‍ली
फाइजर के बाद अब सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति मांगी है। इस कदम के साथ ही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देश की पहली स्वदेशी कंपनी बन गई है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सीरम ने भारतीय दवा महानियंत्रक से अपनी कोरोना वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ के इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति मांगी है। मालूम हो कि सीरम ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ का भारत में ट्रायल और उत्पादन कर रही है। सूत्रों ने बताया कि वैक्‍सीन के आपात इस्‍तेमाल के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने महामारी के दौरान तात्‍कालिक चिकित्सा जरूरतों और व्यापक स्तर पर जनता के हित का हवाला दिया है।

सूत्रों ने एसआईआई के आवेदन का हवाला देते हुए कहा कि कंपनी ने क्लीनिकल परीक्षण के चार डाटा में बताया है कि कोविशील्ड लक्षण वाले मरीजों और कोरोना के गंभीर मरीजों के मामले में अत्‍यधिक असरकारक है। अभी एक दिन पहले ही अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर ने भारतीय दवा नियामक से देश में वैक्सीन के आयात और वितरण की अनुमति देने का अनुरोध करते हुए इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी। हाल ही में सीआइआइ के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा था कि कोरोना वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ परीक्षण में 90 फीसद तक असरदार साबित हुई है। जल्द सभी के लिए उपलब्ध होगी। उन्‍होंने यह भी दावा किया था कि एस्ट्राजेनेका से 10 करोड़ डोज का समझौता किया गया है।

जनवरी तक कोविशिल्ड की न्यूनतम 100 मिलियन खुराक उपलब्ध होगी, जबकि फरवरी के अंत तक इसकी सैकड़ों मिलियन डोज तैयार की जा सकती है। बीते दिनों एस्ट्राजेनेका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुरोध किया है कि वह कम आय वाले देशों में इसके आपात इस्‍तेमाल की मंजूरी दे। वहीं, ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर और ट्रायल चीफ एंड्रयू पोलार्ड ने कहा था कि ब्रिटेन और ब्राजील में जो नतीजे आए हैं, उससे हजारों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। डोज के चार पैटर्न में से एक में अगर वैक्सीन की पहली डोज आधी दी जाए और दूसरी डोज पूरी तो यह 90 फीसद तक असर कर सकती है।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वैक्सीन का कोडनेम एजेडडी-1222 है। इस वैक्सीन ने बुजुर्गों में भी जबर्दस्‍त प्रतिरोधक क्षमता विकसित की है। मालूम हो कि फाइजर की वैक्सीन को रखने के लिए माइनस 70 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, जबकि एस्ट्राजेनेका की वैक्‍सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर रखा जा सकता है। माना जा रहा हैै कि इससे इसके वितरण में आसानी होगी। इमर्जेंसी यूज अथॅराइजेशन यानी आपात मंजूरी वैक्‍सीन, दवाओं, डायग्‍नोस्टिक टेस्‍ट्स या मेडिकल उपकरणों के लिए भी ली जाती है। भारत में आपात मंजूरी के लिए सेंट्रल ड्रग्‍स स्‍टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन एक नियामक है।

आम तौर पर वैक्‍सीन और दवाओं के इस्‍तेमाल की मंजूरी परीक्षणों के बाद दी जाती है जिसमें कई साल लग जाते हैं। लेकिन महामारी की स्थिति में जब लाभ जोखिम पर भारी दिखें तो आपात मंजूरी दे दी जाती है। कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए सरकार ने भी वैक्‍सीन को लेकर तैयारियां तेज कर दी हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बाजार में आने से पहले ही लगभग 1.6 अरब वैक्सीन का ऑर्डर दे चुकी है। ऑर्डर देने के लिहाज से देखें तो भारत पहले नंबर पर है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि देश में कोरोना वैक्सीन कुछ हफ्तों में बन सकती है।

मालूम हो कि मौजूदा वक्‍त में देश में कुल आठ वैक्सीन का क्‍ल‍िनिकल परीक्षण चल रहा है। इन सभी टीकों का उत्पादन देश में ही होना है। इन वैक्‍सीन में से तीन का विकास तो देश में ही किया गया है। बीते दिनों पीएम मोदी ने कहा था कि भारत स्‍वदेशी वैक्सीन पर ज्यादा भरोसा कर रहा है। रिपोर्टों के मुताबिक, वैक्‍सीन सबसे पहले कोरोना के इलाज से जुड़े हेल्थकेयर वकर्स और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को दी जाएगी।