भ्रष्टाचार पर बीजेपी की अजब सियासत की गजब राजनीति : राणा

उज्जवल हिमाचल ब्यूराे। हमीरपुर

यह बीजेपी सरकार की अजब सियासत की गजब राजनीति है कि कोविड महामारी के दौरान घोटाले के आरोप हेल्थ विभाग व सरकार पर लगते हैं, लेकिन इस्तीफा संगठन के मुखिया का होता है। यह सियासत की समझ से भी परे है व प्रचंड जनादेश देकर सरकार को चुनने वाली जनता की समझ से भी परे है। हालांकि भ्रष्टाचार के आरोप के छींटे पार्टी संगठन के शीर्ष दामन पर भी लगने का आरोप है, लेकिन इस भ्रष्टाचार से सरकार का दामन भी साफ-पाक नहीं लग रहा है।

यह पहली बार हुआ है कि जिम्मेदार व जवाबदेह भ्रष्ट तंत्र को संरक्षण देने वाली सरकार की ओर से हेल्थ विभाग में हुए भ्रष्टाचार की न किसी ने जिम्मेदारी ली है और न ही कोई जवाबदेही तय हुई है। अब जनता को यह समझना मुश्किल है कि इस भ्रष्टाचार के लिए जिस सिस्टम की अधिकारिक जिम्मेदारी व जवाबदेही बनती है, उस तंत्र से न तो किसी का इस्तीफा हुआ है और न ही किसी को जिम्मेदार बनाया गया है। उल्टा भ्रष्टाचार की आड़ लेकर अब बीजेपी में आपसी खींचतान शुरू हो गई है।

भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए व जनता के जहन से मुद्दे को भटकाने के लिए अब पार्टी संगठन मुखिया की ताजपोशी को लेकर आपसी रस्सा-कस्सी शुरू हो गई है। राणा ने कहा कि यह बीजेपी की पुरानी सियासी अदा व आदत है कि जब भी कोई घोटाला होता है तो जनता का ध्यान उस मुद्दे से भटकाने के लिए नई सियासी चौधर शुरू हो जाती है।

हालांकि सरकार के गठन के तुरंत बाद ही हेल्थ विभाग में भ्रष्टाचार के आरोपों ने लगातार सुर्खियां बटोरी हैं और दुर्भाग्य यह रहा कि कोविड-19 महामारी के बीच भी कोरोना बचाव के साधनों पीपीई किट, सेनेटाइजर व अन्य कई चीजों को लेकर लगातार भ्रष्टाचार चला रहा व उस भ्रष्टाचार के आरोप निरंतर मुखर होते रहे, लेकिन बजाय इसके कि सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाती, उल्टा अब सरकार व संगठन ने अपनी टांग खिंचाई की सियासत शुरू कर दी है, ताकि जनता का ध्यान भ्रष्टाचार के
असली मुद्दे पर से हटा रहे। राणा ने कहा कि वह सरकार के विरोधी नहीं है, लेकिन भ्रष्टाचार के पक्ष धर भी नही हैं।

अब जांच के नाम पर पर्दा डालने के लिए जो खेल बीजेपी के अंदर चला है, वह भी किसी से छुपा नहीं है। हालांकि कांग्रेस ने चारों तरफ से जनता की आवाज उठाते हुए एक मत मे कहा है कि अगर सरकार की सियासत इस भ्रष्टाचार में शामिल नहीं है, तो फिर इसकी जांच उच्च न्यायालय के सेवारत न्यायधीशों के बैंच से होनी जरूरी है। ऐसे में अगर सरकार खुद को सही मान रही है, तो इस भ्रष्टाचार की जांच की मांग को स्वीकार करके उच्च न्यायालय के सेवारत न्यायधीशों के बैंच से इसकी जांच करवाए, ताकि जनता के सामने दूध का दूध व पानी का पानी सामने हो सके।