हिमाचल में चीड़ की पत्तियों से तैयार हो रही ब्रिकेट्स, सरकार दे रही 50 फीसदी सब्सिडी

उज्जवल हिमाचल। शिमला

हिमाचल प्रदेश में अरबों की वन संपदा को अब फॉरेस्ट फायर का खतरा नहीं सताएगा। वन विभाग फॉरेस्ट फायर के मुख्य कारण पाइन नीडल्स यानी चीड़ की पत्तियों का प्रबंधन करेगा। चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स (कोयले सरीखी ईंटें) तैयार करने के लिए सरकार की ओर से 50 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। इसमें अधिकतम सब्सिडी 25 लाख तक मिलेगी।

हिमालयी सब ट्रॉपिकल एरिया में यह घटनाएं मार्च से जून तक होती हैं। जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण चीड़ की पत्तियां होती हैं। हिमालय के सब ट्रॉपिकल इलाके में पहले चीड़ के पेड़ नहीं होते थे। अंग्रेजों के शासनकाल के समय रेलवे विस्तार का कार्य तेजी से जारी था, उस समय उनको लकड़ी की जरूरत पड़ी तो अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में चीड़ के पेड़ लगवाने शुरू किए। उसके बाद चीड़ ने इस क्षेत्र में मानो कब्जा ही कर लिया हो।

हर साल चीड़ के जंगलों में आग लगने से पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही कई जंगली जीव भी जलकर राख हो जाते हैं। इसके अलावा स्थानीय लोग जो इन जंगलों से अपने पालतू पशुओं के लिए चारा इकट्ठा करते हैं और सूखी लकड़ी इकट्ठा कर चूल्हा जलाते हैं उनको भी भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। चीड़ की सूखी पत्तियों का समाधान निकालने के लिए आईआईटी मंडी के शोधार्थियों ने पहल की है। उन्होंने जंगल से पत्तियां जमा कर बुरादे और लकड़ी के गुटकों के साथ मिलाया और मशीनों में डाला इसके बाद शानदार ब्रीकेट्स तैयार हो जाती हैं।

इसके लिए मार्च के ड्राई सीजन से लेकर जुलाई में मानसून की आमद तक जंगलों से चीड़ की सूखी पत्तियां इकट्ठा की जाती हैं। आईआईटी मंडी की सहायक प्रवक्ता डॉ. आरती कश्यप ने ब्रीकेट्स पर हुए अनुसंधान के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि अनुसंधान के अनुसार चीड़ व लैंटाना की पत्तियों की उष्मीय ऊर्जा उद्योगों में ईंधन के लिए उपयुक्त पाई गई हैं। उन्होंने बताया कि इनका प्रयोग उद्योगों और उन इलाकों में अच्छा खासा हो सकता है, जहां ईंधन पहुंचना कठिन होता है।

वहीं, वन विभाग के कार्यकारी हेड अजय श्रीवास्तव ने बताया कि चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स तैयार करने के लिए सरकार 50 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। इसमें अधिकतम सब्सिडी 25 लाख तक मिलेगी। इस योजना के तहत अभी तक कुल 40 से अधिक आवेदन वन विभाग के पास आए हैं। इनमें से अधिकांश को सब्सिडी जारी हो गई है। इन यूनिट्स में चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स तैयार किए जा रहे हैं। उन्हें सीमेंट उद्योग को वैकल्पिक फ्यूल के तौर पर बेचा जा रहा है।उन्होंने कहा कि इससे दोहरा फायदा होगा। पहला यह कि फॉरेस्ट फायर के लिए जिम्मेदार चीड़ की पत्तियां नुकसान नहीं कर पाएंगी।

इसके अलावा ब्रिकेट्स की बिक्री से कुछ आय हो जाएगी। इस कार्य में जुटे लोगों के अनुसार एक छोटी यूनिट को स्थापित करने के लिए कम से कम दस लाख रुपए का खर्च आएगा। चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स तैयार होने से फॉरेस्ट फायर की घटनाओं में कमी आएगी। जो लोग इन यूनिट्स की स्थापना के इच्छुक होंगे, उन्हें पूंजी लागत पर पचास फीसदी सब्सिडी मिलेगी।वन विभाग पाइन नीडल्स को इकट्ठा करने में सहयोग करेगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार चीड़ की पत्तियों से खिलौनों और अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए एक परियोजना तैयार कर रही है, जिसके लिए महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए रूपरेखा तैयार करने के बारे में भी चर्चा की है। इस परियोजना से न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि जंगल में आग लगने की घटनाओं को रोकने में भी मदद मिलेगी। क्योंकि ज्यादातर अग्निशमन घटनाएं चीड़ की पत्तियों के कारण होती हैं।

प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि चीड़ की पत्तियों के आधार पर स्थापित किये जा रहे लघु उद्योगों में बनाए जा रहे ब्रीकेट्स को सीमेंट उद्योग ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए 10 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदा जाएगा। इससे स्थानीय लोगों और किसानों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। इस प्रोजेक्ट के शुरुआती चरण में मंडी के डीएफओ को इस परियोजना में यूनिट्स की मशीनरी खरीद का नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था। जो लोग इन यूनिट्स की स्थापना के इच्छुक हैं उन्हें पूंजी लागत पर पचास फीसदी सब्सिडी दी जा रही है।