पौंग झील किनारे बसे गांवों का पर्यटन की दृष्टि से नहीं हो पाया प्रचार-प्रसार : कैप्टन संजय

कहा, जसवां-परागपुर के अंदरूनी भागों में नहीं पहुंच पाते हैं पर्यटक

उज्जवल हिमाचल। डाडासीबा

कैप्टन संजय ने कहा है कि पौंग झील के किनारे बसी पंचायतें पर्यटन का बड़ा केंद्र साबित हो सकती हैं, लेकिन विडंबना यह है कि इसका जो प्रचार व प्रसार होना चाहिए था, उसे लेकर कंजूसी बरती गई। रविवार को जसवां-परागपुर क्षेत्र की बस्सी पंचायत में जनसंवाद कार्यक्रम में स्थानीय वासियों से रूबरू हाेते हुए पराशर ने कहा कि पौंग झील पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे हुए है। इसका पर्यटन की दृष्टि से बेहतर दोहन भी हो सकता है। इसके लिए विजन की आवश्यकता है। अगर पर्यटन की दृष्टि से बस्सी, जंबल, बाड़ी, डाडासीबा, घमरूर, रैल, निचला बलवाल, कस्बा जागीर और नंगल चौक की पंचायतों में कार्य हुआ होता तो न सिर्फ बड़े पैमाने पर राजेगार सृजन के नए अवसर पैदा होते बल्कि यह अभयारण्य साहसिक गतिविधियों के शौकीन पर्यटकों के लिए शानदार पर्यटन स्थल साबित होता। बावजूद इस दिशा में सकारात्मक सोच साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

संजय ने कहा कि हिमाचल में पर्यटन ही आय का प्रमुख स्त्रोत है। प्रदेश में हर रोज हजारों की संख्या में बाहरी राज्याें से यात्री धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं या फिर प्रमुख पर्यटन स्थलों तक ही सीमित रह जाते हैं। जसवां-परागपुर के कालेश्वर महादेव से लेकर निचला बलवाल से व घमरूर तक के क्षेत्र में पौंग झील की सुंदरता इस क्षेत्र के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। बावजूद जो झील को लेकर पर्यटन के लिहाज से प्रचार व प्रसार होना चाहिए था, वो नहीं हो पाया है। यही कारण है कि पर्यटक भी प्रमुख सड़क मार्गों से ही यात्रा करके लौट जाते हैं। इस क्षेत्र में साहसिक खेलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। पराशर ने कहा कि उन्होंने भी बीस वर्ष से ज्यादा का समय समुद्र में ही बिताया है।

उनके पास कई देशों में पानी में इस तरह की गतिविधियों का अनुभव है। आस्ट्रेलिया या अन्य यूरोपीय देशों की तर्ज पर इस झील में क्रूज जहाज चल सकते हैं, जिसमें बैठकर पर्यटक लंच या डिनर कर सकें। इसके अलावा वाटर स्पोर्टस का दायरा अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाया जा सकता है। इसलिए उनका विजन है कि इस झील को पर्यटन की दृष्टि से जोड़ा जाए तो रोजगार के नए साधन पाकर स्थानीय वासियों के जीवन स्तर भी उठेगा। कैप्टन संजय ने कहा कि पौंग झील में कई विदेशी परिंदे हजारों किलोमीटर का सफर तय करके वहां पहुंचते हैं और सर्दियों का मौसम यहीं बिताते हैं। कई पक्षी साइबेरिया से पौंग झील तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करते हैं।

प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को इस विषय में जिज्ञासा होती है, लेकिन जब तक पर्यटक यहां पहुंचेगे ही नहीं, तब तक स्थानीय वासियों की आमदनी भी कैसे बढ़ सकती है। संजय ने कहा कि पौंग झील के पर्यटन को धार्मिक पर्यटन के साथ भी जोड़ा जा सकता है। कालेश्वर महादेव, मुचकुंद महादेव का ऐतहािसक मंदिर और डाडासीबा का प्रसिद्ध राधा-कृष्ण मंदिर भी हैं। साथ में हेरीटेज विलेज परागपुर का भी पर्यटक दीदार कर पाएंगे। जसवां-परागपुर के अंदरूनी इलाकों में भी पर्यटन को लेकर काफी कुछ जानने व देखने को है। लाजिमी है कि इस पर दृढ़ इच्छा शक्ति व सही प्लान से काम करने की आवश्यकता है। वह इस क्षेत्र में पर्यटन की संभावनाआें को लेकर प्रारूप तैयार कर रहे हैं और भविष्य में उसी रोड़ मैप के हिसाब से कार्य किया जाएगा।