गुड न्यूज :  देश में पहली बार हिमाचल में जगी हींग की खेती की उम्मीद, लाहौल में तैयार हुआ पौधा

उज्जवल हिमाचल । लाहौल स्पीति

आईएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिक अफगानिस्तान से लाए गए हींग के बीज से लैब में पनीरी तैयार करने में सालों से जुटे थे। लैब में तैयार पनीरी को पहली बार खेतों में अंकुरित किया गया है। अब देश में हींग की खेती की संभावना बढ़ गई है. घाटी में जमीन से बर्फ पिघलने के बाद इसके नीचे हींग के पौधे अंकुरित होने की खबर से किसानों में बेहद खुशी है। हींग की रोपी गई पनीरी अंकुरित होने से यह दावा और पुख्ता हो गया है कि लाहौल घाटी की आबोहवा हींग की पैदावार के लिए माकूल है।

 

क्वारिंग गांव के किसान रिगजिन हायरपा ने हींग के पौधे अंकुरित होने की सूचना कृषि विभाग को दी है। गौर रहे कि समुद्रतल से लगभग 11 हजार फीट की ऊंचाई पर लाहौल के गेमूर गांव में 17 अक्तूबर को देश में सबसे पहले हींग की पनीरी बीजी थी. घाटी में फिलहाल सात किसानों को इस मुहिम के लिए चुना गया है. इन किसानों के पांच बीघा खेत में हींग रोपा था।

 

देश में सलाना हींग की खपत करीब 1200 टन है. भारत अफगानिस्तान से 90, उज्बेकिस्तान से 8 और ईरान से 2 फीसदी हींग हर साल आयात करता है. हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान जरूरी है. लाहौल में ट्रायल के तौर पर क्वारिंग, मडग्रां, बीलिंग और केलांग में हींग रोपा है. आईएचबीटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक अशोक कुमार का कहना है कि हींग की फसल पांच साल में तैयार होती है. इसकी जड़ पूरी तरह तैयार होने पर ही बीज तैयार होते हैं.