घूमने के हैं शौकीन तो प्राकृतिक सुंदरता के साथ ये ऐतिहासिक जगह है बेहतर विकल्प

हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित भारत के सबसे पुराने किलों में से एक कांगड़ा फोर्ट

कांगड़ा किला

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

कांगड़ा किला

हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता व सांकृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। यहां घूमने के लिए कई प्राकृतिक व ऐतिहासिक पर्यटन स्थल हैं। एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित भारत के सबसे पुराने किलों में से एक कांगड़ा फोर्ट है। यह भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है। शिवालिक हिलसाइड के पास 463 एकड़ में फैला, ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ, यह एक बेहद ही खुबसुरत किला है। इस किले के पास मांझी और बाणगंगा जैसी नदियों का संगम होता है। इसके अलावा धौलाधार का खूबसूरत नजारा भी देखने को मिलता है। कांगड़ा किले को नगर कोट के नाम से भी जाना जाता है। ये काँगड़ा शहर से 3  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
एक समय था जब कांगड़ा किला अपने अपार धन के लिए मशहूर था। यही वजह थी कि महमूद गजनी, मोहम्‍मद बिन तुगलक, फिरोज शाह तुगलक, अकबर ने किले को अपने कब्जे में लेने के लिए कई हमले किए थे।

कांगड़ा किले का इतिहास

इतिहास में कांगड़ा फोर्ट को लेकर कई कहानियां दर्ज हैं जो कि लूट, विश्वासघात और विनाश से जुड़ी हैं। कांगड़ा किले का निर्माण कांगड़ा राज्य के कटोच वंश के राजपूत परिवार ने करवाया था। जिनका प्रमाण प्राचीन त्रिगत  साम्राज्य के वंशज होने के रुप में मिलता है। जिसका उल्लेख महाभारत  पुराण में किया गया है। सं 1615 में, मुग़ल सम्राट अकबर ने इस किले पर घेराबंदी की थी परन्तु वो इसमें असफल रहा। इसके पश्चात सं 1620 में, अकबर के पुत्र जहांगीर ने चंबा के राजा को मजबूर करके इस किले पर कब्ज़ा कर लिया। मुग़ल सम्राट जहांगीर ने सूरज मल की सहायता से अपने सैनिकों को इस किले में प्रवेश करवाया था। कटोच के राजाओं ने मुग़ल शासन के कमजोर नियंत्रण और मुग़ल शक्ति की गिरावट के कारण लगातार मुग़ल नियंत्रित क्षेत्रों को लुटा। सं 1789 में राजा संसार चंद द्वतीय ने अपने पूर्वाजों के प्राचीन किले को बचा लिया। महाराजा संसार चंद ने गोरखाओं के साथ कई युद्ध किये थे, जिनमें एक ओर गोरखा और दूसरी ओर सिख राजा महाराजा रंजीत सिंह होते थे। संसार चंद ने इस किले का प्रयोग अपने पडोसी राज्य के राजाओं को कैद करने के लिए किया था। जो उनके खिलाफ हुए षड्यंत्र का कारण बना। सिखों और कटोचों के बीच हुए एक युद्ध के दौरान, किले के द्वार को आपूर्ति के लिए खुला रखा गया था। सं 1806 में गोरखा सेना ने इस खुले द्वार से किले में प्रवेश कर लिया। ये सेना महाराजा संसार चंद और महाराजा रंजीत सिंह के बीच एक गठबंधन का कारण बनी। इसके बाद सं 1809 में गोरखा सेना पराजित हो गयी और अपनी रक्षा करने के लिए युद्ध से पीछे हट गयी और सतलुज नदी के पार चली गयी। इसके पश्चात सं 1828 तक ये किला कटोचों के अधीन ही रहा क्योकि संसार चंद की मृत्यु के पश्चात रंजीत सिंह ने इस किले पर कब्ज़ा कर लिया था। अंत में सं 1846 में सिखों के साथ हुए युद्ध में इस किले पर ब्रिटिशों ने अपना शासन जमा लिया। परन्तु 4 अप्रैल 1905 में आये एक भीषण भूकम्प आया जिसमें उन्होंने इस किले को छोड़ दिया।