क़ेपी पांजला : डेस्क कांगडा
श्रीनगर में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आंतकी हमले में शहीद अशोक कुमार डोगरा की वजह से चर्चा में आया सुलह विधानसभा क़े अति पिछड़े क्षेत्र में आने वाला गांव काहनफट्ट वीरों की भूमि है। ढलानदार भूमि पर बसे और जंगलों से घिरे इस गांव में कुछ घरों की आपस में दूरी आधा किलोमीटर से एक किलोमीटर तक है। करीब 800 लोगों की आबादी वाले इस गांव से 50 से ज्यादा बाशिंदे भारतीय सेना में जाकर देशसेवा कर चुके हैं। इसी गांव का एक परिवार ऐसा भी है, जिसने देश क़ी सेना क़े लिए दस जवान दिए हैं. आईए आपको मिलवाते हैं गांव क़े एक फौजी परिवार से, जो दूसरे विश्व युध्द से लेकर सेना में सेवा देता आ रहा है.
दादू क़ी राह पर 6 पोते
अंग्रेजों के समय दूसरे विश्व युध्द में दुश्मन का डटकर सामना करने वाले स्वर्गीय चंदू राम के चार बेटे और 8 पौते हैं। उनमें 2 बेटे मुल्तान सिंह और पंजाब सिंह आर्मी से और प्रीतम चंद एमईएस और प्यार चंद पंजाब बिजली बोर्ड से रिटायर हैं। उनके 6 पौते लक्ष्यदीप (बीएसएफ),पंकज (आर्मी), करण (आईटीबीपी), सुमित (सीआईएसएफ), अंकुश कुमार (सीआरपीएफ) और अमित कुमार (एसएसबी) में हैं। इसके अलावा दौ पौते पंकज और रिंकू पढ़ाई कर रहे हैं।
एवरेस्ट पर चढ़ेंगे लक्ष्यदीप्र
पहाड़ी जन्म भूमि रही लक्ष्यदीप को पहाड़ों का बहुत क्रेज है। मनाली और उत्तराखंड में टेनिंग ले चुके लक्ष्यदीप का चयन अब आर्मी की 30 सदस्य वाली टूकड़ी के साथ एवरेस्ट के लिए हुआ है। उन्होंने बताया कि उनका पिछल्ले साल भी चयन हुआ था लेकिन कोरोना की वजह से जा नहीं पाए थे। उन्होंने बताया कि वे अगले माह एवरेस्ट की चोटी पर जाएंगे, जिसके लिए वह इन दिनों बहुत क्रेजी हैं। उनका कहना है कि स्कूल टाइम में जब एवरेस्ट के बारे में सुना था तभी से वहां जाने का सपना था।
सड़क न होने क़े चलते गांव से पलायन
इस परिवार की महिलाएं गृहणियां हैं। इस कथा का दुखद पहलू यह है कि भले ही स्वर्गीय चंदू राम दूसरे विश्वयुद्ध की लड़ाई लड़कर आए हों, लेकिन आज तक उनके घर तक रोड नहीं है। इसी वजह से आजकल पूरा परिवार अपनी जन्मभूमि को छोड़ पालमपुर से 10 किलोमीटर दूर भट्टू गांव में रह रहा है। गांव क़े लिए अब रोड का काम शुरू हो चुका है और इस साल तक बनकर तैयार हो जाएगा.