30 क्विंटल मक्खन से हुआ मां बज्रेश्वरी देवी का श्रृंगार, 20 जनवरी से बंटेगा प्रसाद

अंकित वालिया। कांगड़ा

मकर संक्रांति पर जिला स्तरीय घृत पर्व पर मां श्री बज्रेश्वरी देवी की पावन पिंडी व मंदिर परिसर में क्षेत्रपाल भगवान पर मक्खन का लेप चढ़ाकर फल और मेवों से श्रृंगार किया गया। मंदिर प्रशासन ने इसका प्रसारण लाइव लोगों को दिखाने का प्रबंध किया था । कोरोना नियमों के चलते मंदिर को नो बजे बंद कर दिया गया और पुजारी वर्ग द्वारा मां की पिंडी पर  माखन का लेप चढ़ाने का कार्य पूरी रात चलता रहेगा। बाहरी व स्थानीय श्रद्धालुओं ने माथा टेक सुख समृद्धि की कामना की। 30 क्विंटल देसी घी  श्रद्धालुओं द्वारा  चढ़ाया गया है।

यह है मान्यता

मान्यता और दावा है कि इस मक्खन रूपी प्रसाद से चर्म रोगों और कैंसर जैसी बीमारी से निदान मिलता है। घृत मंडल पर्व के संबंध में कहा जाता है कि जालंधर दैत्य को मारते समय मां बज्रेश्वरी देवी के शरीर पर कई चोटें आई थीं और देवताओं ने माता के शरीर पर माखन का लेप किया था इसी परंपरा के अनुसार देसी घी को एक सौ एक बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाकर मां की ¨पिंडी पर चढ़ाया जाता है। साथ ही मेवों और फलों की मालाएं भी चढ़ाई जाती हैं। बाद में ये मक्खन जरूरतमंदों समेत भक्तों में भी बांटा जाता है।

आदि काल से चल रही परंपरा….

बज्रेश्वरी मंदिर के वरिष्ठ पुजारी पंडित राम प्रसाद शर्मा कहते हैं कि मंदिर में यह प्रथा आदि काल से चली आ रही है। घृत पर्व का प्रसाद चरम और जोड़ों के दर्द में सहायक होता है। मंदिर में 21 जनवरी को घृत प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं में बांटा जाएगा। मंदिर के इतिहास पर छपी किताब में भी इस परंपरा का जिक्र है। घृत मंडल पर्व पर माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो जाती है। स्थानीय और बाहरी लोगों द्वारा मंदिर में दान स्वरूप देसी घी पहुंचाया जाता है।

मंदिर प्रशासन इस घी को 101 बार ठंडे पानी से धोकर मक्खन बनाने के लिए मंदिर के पुजारियों की एक कमेटी का गठन करता है। पुजारियों की यही कमेटी मक्खन की पिन्नियां बनाती है और चौदह जनवरी को देर शाम माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो सुबह तक जारी रहती है।