पंजाब सरकार के लिए नवजोत सिंह सिद्धू बने चुनाैती : सीएम

उज्जवल हिमाचल। चंडीगढ़

पंजाब के मुख्‍यमंत्री चरणजीत सिंह चन्‍नी की सरकार का आज एक माह पूरा हो गया है। इस दौरान काम और फैसले से ज्‍यादा पंजाब कांग्रेस की खींचतान ही ज्‍यादा हावी रही। चन्‍नी सरकार को विपक्ष नहींं, बल्कि अपनी पार्टी कांग्रेस के प्रदेश प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू चुनौती बने रहे। पंजाब कांग्रेस में लंंबे खींचतान के बाद कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने इस्‍तीफा दे दिया था और चरणजीत सिंह चन्‍नी की सरकार ने पंजाब की कमान संभाली थी। इसके बाद लगा था कि पंजाब कांग्रेस में खींचतान खत्‍म हो जाएगी। शुरू के एक-दो दिन ऐसा ही लगा, लेकिन फिर पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजाेत सिंह सिद्धू अपने पुराने ‘विद्रोही तेवर’ में आ गए और अपनी पार्टी की चन्‍नी सरकार पर हमला बोल दिया।

अपने एक माह के कार्यकाल में चन्‍नी सरकार ने फैसले तो कम ही लिए, लेकिन खींचतान में ज्‍यादा फंसी रही। वास्‍तव में सीएम चरणजीत सिंह चन्‍नी के लिए नवजोत सिंह सिद्धू बड़ी चुनौती रहे। वैसे, एक माह में सरकार ने चार लोक लुभावने फैसले करके 2022 के विधान सभा चुनाव को लेकर अपनी व्यूहरचना करनी शुरू कर दी है, लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी सरकार के समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं या यूं कहें कि 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बेशुमार चुनौतियां हैं। राजनीतिक रूप से नवजोत सिंह सिद्धू लगातार उनके सामने बाधाएं उत्पन्न करने से नहीं चूक रहे हैं। वहीं, जिन तीन प्रमुख मुद्दों को लेकर राज्य में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार का तख्ता पलट हुआ था, उन मुद्दों पर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने अभी तक चुप्पी साध रखी है।

सिद्धू ने जिस तरह से दो अफसरों की नियुक्ति को मुद्दा बनाकर पंजाब कांग्रेस में सियासी ‘तूफान’ खड़ा कर दिया और प्रदेश प्रधान के पद से इस्‍तीफा दे दिया, उससे लगता नहीं है कि आगे भी वह ज्‍यादा खामोश रहेंगे। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्‍या सिद्धू आगे भी चरणजीत सिंह चन्‍नी के लिए राजनीतिक रूप से चुनौती बने रहेंगे। मुख्यमंत्री की कमान संभालने के बाद चन्नी ने पांच कैबिनेट बैठकें की। इनमें से चार महत्वपूर्ण फैसले लिए गए, जिसमें 2 किलोवाट तक के बिजली कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं का बकाया बिल माफ, पानी के बिल शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति माह 50 रुपए होगा, लाल डोरा के तहत आने वाले लोगों की जमीन का मालिकाना हक दिलवाने से लेकर दर्जा चार मुलाजिमों की भर्ती जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए गए।

मुख्यमंत्री चन्‍नी ने प्रशासनिक रूप से भले ही चार फैसलों से आम लोगों में यह संदेश देने की कोशिश की कि वह लोगों के हित में फैसले ले रहे हैं, लेकिन बेअदबी, नशा और निजी थर्मल प्लांटों के साथ हुए समझौतों को लेकर सरकार की तरफ से को कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए। यह यह वहीं, मुद्दे है जिन्‍हें लेकर पंजाब के मंत्रियों ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में बगावत की थी। राज्य के गृहमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा पूर्व में बेअदबी को लेकर खासे मुखर भी रहे हैं, लेकिन गृह विभाग संभालने के बाद वह इस मामले में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी जितनी तेजी से अपनी छवि को उभार रहे हैं, उनके सामने चुनौतियां भी उनती ही बढ़ती जा रही है।

मुख्यमंत्री द्वारा एडवोकेट जनरल और कार्यकारी डीजीपी लगाने के विरोध में नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रदेश प्रधान पद से न सिर्फ इस्तीफा दे दिया, बल्कि इसे सोशल मीडिया पर डाल कर उन्होंने खुल कर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। मुख्यमंत्री के पहले फैसले को लेकर सिद्धू ने जो नाराजगी जाहिर की, उससे कांग्रेस हाईकमान भी हिल गई। मुख्यमंत्री भले ही सिद्धू के साथ किसी भी मतभेद होने से इनकार कर रहे हैं, लेकिन सिद्धू की नाराजगी बरकरार है। सिद्धू ने अपने तरफ से स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे।

यही कारण है कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत और पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल के बैठक करने और उसके बाद राहुल गांधी के साथ मुलाकात करने के बावजूद सिद्धू ने अभी तक अपना इस्तीफा वापस नहीं लिया है। सिद्धू की नाराजगी स्पष्ट रूप से कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनी हुई है। चन्नी और सिद्धू के विवाद का सबसे अधिक फायदा विपक्ष को हो रहा है। आम लोगों में स्पष्ट संकेत जा रहा है कि सरकार और कांग्रेस पार्टी एक साथ नहीं है।