लापरवाही : संक्रमण का प्रकोप भयंकर, ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों तक की किल्लत

उज्जवल हिमाचल। नई दिल्ली

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों में भी हाहाकार जैसी स्थिति पैदा कर दी है। संक्रमण की यह दूसरी लहर कोरोना वायरस के बदले हुए प्रतिरूपों के कारण अधिक तेज है। फिलहाल अस्पतालों में कोरोना मरीजों का तांता लगा है। डॉक्टर और नर्स उनका उपचार बहुत लगन से कर रहे हैं, लेकिन संक्रमण का प्रकोप इतना भयंकर है कि ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों तक की किल्लत है। तमाम अस्पतालों में तो एक-एक बेड पर दो-दो मरीज हैं। कोविड महामारी से ग्रस्त कई मरीजों को ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है।

स्थिति बिगड़ने पर रेस्परेटर लगाने पड़ते हैं। कितने ही अस्पताल ऐसे हैं, जहां मरीजों की अधिक संख्या के चलते रेस्परेटर पर्याप्त नहीं साबित हो रहे हैं। स्थिति गंभीर होने के कारण जनमानस डरा हुआ है और हालात संभलते न देख व्याकुल है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने जिस व्यापकता के साथ देश को चपेट में ले लिया है, उसकी उम्मीद शायद नीति-नियंताओं और डॉक्टरों को भी नहीं थी।

सवाल है कि जब अन्य देश कोरोना की दूसरी-तीसरी लहर से दो-चार हो रहे थे, तो हमारे नीति-नियंता यह मानकर क्यों चल रहे थे कि भारत में ऐसा नहीं होगा? जनवरी-फरवरी में जब पहली लहर थोड़ी थम सी गई, तो पता नहीं क्यों सरकारों से लेकर डॉक्टर तक सभी आश्वस्त हो गए कि देश महामारी से उबर रहा है। नतीजा यह हुआ कि जिस स्वास्थ्य ढांचे को सशक्त करने की कोशिश पिछले वर्ष अगस्त-सितंबर में शुरू हुई थी, उसमें ढिलाई आ गई। इसी के साथ लोग भी लापरवाह हो गए।

चूंकि पिछले साल इस नतीजे पर पहुंचा गया था कि कोविड से लड़ने का एक बड़ा हथियार ऑक्सीजन है, इसलिए देश भर में 160 से अधिक ऑक्सीजन प्लांट लगाना तय हुआ, लेकिन किसी ने यह नहीं देखा कि कहां कितने प्लांट समय से लग रहे हैं? आखिर इसे बेपरवाही के अलावा और क्या कहा जा सकता है? जब जनवरी-फरवरी में ऑक्सीजन की मांग नहीं बढ़ी तो और सुस्ती आ गई। ऑक्सीजन को लंबी दूरी तक भेजना थोड़ा मुश्किल होता है। अपने देश में ऑक्सीजन की ढुलाई के लिए जैसे टैंकर चाहिए, वैसे पर्याप्त संख्या में नहीं हैं।

बीते दिनों जब ऑक्सीजन की मांग बढ़नी शुरू हुई तो केंद्र सरकार ने आनन-फानन ऑक्सीजन उद्योग और खास तौर पर स्टील प्लांट में इस्तेमाल होने वाली ऑक्सीजन को भी अस्पतालों में भेजना शुरू कर दिया, लेकिन स्थिति संभल नहीं रही है। इसका प्रमाण है ऑक्सीजन के अपने कोटे के लिए राज्यों में खींचतान और आरोप-प्रत्यारोप। दिल्ली, यूपी और हरियाणा के बीच कुछ ज्यादा ही खींचतान दिख रही है।

भारत का स्वास्थ्य ढांचा पहले भी दुरुस्त नहीं था। कोरोना की पहली लहर ने इसकी पोल खोली थी, लेकिन अब तो सब कुछ चरमराता दिख रहा है। यदि चरमराते स्वास्थ्य ढांचे को समय रहते सुधारने के प्रयास किए जाते तो जो स्थिति बनी, उससे बचा जा सकता था। कम से कम अब तो हमारे नीति-नियंता चेत जाएं, क्योंकि संक्रमण की एक और लहर आ सकती है। यह माना जाना चाहिए कि जिन लोगों पर कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का सामना करने की जिम्मेदारी थी, उनसे चूक हुई और आज देश को उसके ही दुष्परिणाम भोगने पड़ रहे हैं। पिछली कोरोना लहर में करीब 70 फीसद आबादी वाला ग्रामीण क्षेत्र बच गया था, लेकिन इस बार वहां भी संक्रमण पैर पसारते दिख रहा है।