बढ़ रहे धरती के संकट से खाद्यान्न संकट जैसी पैदा हाेंगी समस्याएं

उज्जवल हिमाचल। नई दिल्ली

भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र (सीसीआर) के नेतृत्व में तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें सामने आया है कि सतह के निकट वायु के वैश्विक औसत तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पूर्व औद्योगिक काल से ही सतह के निकट वायु के वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि होती आ रही है तथा बढ़ते तापमान का यह क्रम जारी है। इस दौरान इसके वैश्विक औसत तापमान में लगभग एक फॉरेनहाइट की वृद्धि हुई है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल में ‘भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन’ नामक एक जलवायु रिपोर्ट प्रकाशित की है। पिछले तीन दशकों के दौरान पृथ्वी की सतह 1850 के पहले दशक की तुलना में क्रमिक रूप से अधिक गर्म रही है, जबकि वर्ष 2001-2018 की अवधि के दौरान प्रेक्षणात्मक रिकॉर्ड में 19 में से 18 सबसे गर्म वर्ष रहे हैं। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ते रहने के कारण वर्षा, अतिविषमताओं, ग्लेशियर पिघलने एवं समुद्र स्तर में वृद्धि की दर और पैटर्न में लगातार परिवर्तन होते रहे हैं। वर्ष 1993-2017 के दौरान उत्तरी हिन्द महासागर के समुद्र स्तर में प्रति वर्ष 3.3 मिमी की दर से बढ़ोतरी हुई है, जो वैश्विक औसत के समान है।

वैसे तो उत्तरी हिन्द महासागर में वृद्धि में उष्मीय विस्तार ने प्रमुख भूमिका निभाई है। वहीं, समुद्री स्तर में वृद्धि का प्रमुख कारण ग्लेशियर का पिघलना रहा है। तापमान में कथित वृद्धि के कारण प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम काफी बढ़ गया है। वैसे तो जलवायु परिवर्तन वैश्विक है, लेकिन जलवायु में होने वाले परिवर्तन पूरी पृथ्वी पर एक-समान नहीं होते हैं, इसलिए प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी पूरी दुनिया में अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, वैश्विक औसत की तुलना में आर्कटिक तापमान में काफी तेजी से वृद्धि हो रही है।

पूरी दुनिया में समुद्री स्तर में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। वैश्विक महासागर के गर्म होने तथा हिम एवं ग्लेशियर पिघलने का एक परिणाम यह हुआ है कि समुद्र के स्तर के औसत में बढ़ोतरी हो रही है। समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण अधिक जनसंख्या वाली तटीय आबादियों तथा विश्व की निचली सतह वाले द्वीपसमूहों पर स्थित देशों पर काफी अधिक दबाव पड़ सकता है। हिन्द महासागर वाले क्षेत्र में काफी अधिक जनसंख्या है, इसमें बहुत से निचली सतह वाले द्वीपसमूहों तथा तटीय क्षेत्र हैं तथा भरपूर मात्रा में समुद्री परितंत्र है। हिन्द महासागर के आसपास के क्षेत्रों में लगभग 2.6 अरब लोग रहते हैं, जो विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या के बराबर है। एक तिहाई भारतीय जनसंख्या तथा अधिकांश एशियाई जनसंख्या तटीय क्षेत्रों में स्थित है।

इसलिए समुद्री स्तर में वृद्धि के कारण जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, तटीय इंफ्रास्ट्रक्चर एवं समुद्री पारितंत्र के लिए लगातार चुनौतियां बढ़ सकती हैं। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपे अध्ययन में कहा गया है कि आने वाले वर्षाें में भारत में 1.2 बिलियन लोग गर्मी के इस ताप का सामना करेंगे, जबकि पाकिस्तान में 100 मिलियन, नाइजीरिया में 485 मिलियन लोग गर्मी के इस प्रकोप का सामना करेंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में दुनियाभर में औसत सालाना तापमान छह डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 28 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में रहते हैं, जो कि लोगों की सेहत और खाद्य उत्पादन के लिहाज से ठीक है, पर यदि यह तापमान बढ़ता रहा, तो इसका आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक असर होंगे। इसकी वजह से मानव आबादी के लिए आजीविका और रहन-सहन से लेकर खाद्यान्न संकट जैसी समस्याएं उत्पन्न होंगी।