ऑस्ट्रिया की पावरहाइड्रो कंपनी के इंजीनियरों ने बदली बस्सी परियोजना की तस्वीर

जतिन लटावा। जोगिंद्रनगर

हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड उहल हाइडल प्रोजेक्ट स्टेज टू बस्सी परियोजना के दिन बहुरने शुरू हो चुके हैं। 18 करोड़ मशीनरी के जीर्णोद्धार पर खर्च किए गए हैं। संपूर्ण परियोजना का डिजिटलाइजेशन करने के बाद अब उत्पादन में बढ़ोतरी की भी उम्मीदें जगी है। करीब 40 साल बाद परियोजना में स्थापित साढ़े 16 मैगावाट की चार टरबाईनों की मरम्मत के दौरान उसमें स्थापित वैरिंग थ्रस्ट को नए सिरे से विकसित किया गया है। इससे परियोजना में विद्युत उत्पादन को लेकर कोई भी दिक्कत पेश नहीं आएगी।

ऑस्ट्रिया की पावरहाइड्रो कंपनी के इंजीनियरों ने बदली परियोजना की तस्वीर…

वहीं, वर्षों पुरानी मशीनरी की आयु सीमा भी अब बढ़ चुकी है। ऑस्ट्रिया की एक बड़ी हाइडल पावर कंपनी ने बस्सी परियोजना की मशीनरी में जान डाल दी है। इससे परियोजना में विद्युत उत्पादन की बढ़ोतरी को लेकर भी कर्मचारियों में उम्मीद जगी है। मंडी जिला के जोगेंद्रनगर में साल 1974 में बस्सी परियोजना उहल द्वितीय में विद्युत उत्पादन शुरू करने के लिए उस दौरान 15 से 16 करोड़ रूपये खर्च 15 मैगावाट के चार मशीनरी को स्थापित किया गया था। उस समय से 60 मैगावाट विद्युत उत्पादन हुआ करता था। वर्ष 2010 से 12 के बीच में 15 मैगावाट की चार टरबाईनों का डिजिटलाइजेशन कर उनकी क्षमता 66 मैगावाट पहुंचाई गई और अब 18 करोड़ खर्च कर परियोजना का स्वरूप बदला गया है।

हमीरपुर, पालमपूर के डैहन तक होती है विद्युत आपूर्ति

जोगेंद्रनगर की महत्वकांक्षी बस्सी पन विद्युत परियोजना से जिला हमीरपूर के 132 केवी दो सब स्टेशनों में बिजली की आपूर्ति होती है। पालमपूर के डैहन सबस्टेशन में भी यहीं से बिजली की आपूर्ति होने के बाद पालमपूर के विद्युत उपभोक्ताओं को 24 घंटे बिजली का लाभ मिल पाता है। वहीं शानन पावर हाउस से भी बिजली का आदान प्रदान कर हजारों लाखों युनिट बिजली की आपूर्ति इसी परियोजना से होती है। जिसके जीर्णोद्धार से अब परियोजना में नई जान आई है।

66 मैगावाट पन विद्युत बस्सी परियोजना के जीर्णोद्धार को लेकर 18 करोड़ रूपये खर्च किए गए हैं। परियोजना का डिजिटलाइजेशन भी हो चुका है। इससे नियमित विद्युत उत्पादन में कोई भी संकट नहीं रहा है। निकट भविष्य में विद्युत उत्पादन बढ़ने की भी संभावनाएं है।