बेकार नहीं जाने देंगे शहीद रेल कर्मियों का बलिदान : शिवगोपाल मिश्रा

कार्तिक । बैजनाथ

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

लगभग 51 साल पहले पठानकोट रेलवे स्टेशन पर सरकार की बर्बरता तब सामने आई, जब अपनी जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे रेल कर्मियों पर तत्कालीन सरकार ने गोली चलवा दी, इसमें चार रेल कर्मचारियों समेत कुल पांच लोग शहीद हो गए। सरकार के इस रवैये से नाराज रेल कर्मचारी अब हर वर्ष पपरोला व पठानकोट रेलवे स्टेशन में बड़ी संख्या में जमा होकर शहीदों को याद कर कार्यक्रम का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि न सिर्फ सरकार के जुल्म-ज्यादती का विरोध करते हैं, बल्कि शहीदों को याद करते हुए ये शपथ भी लेते हैं कि उनकी कुर्बानी को बेकार नहीं जाने देगें, हर जुल्म के खिलाफ एकजुट होकर डटकर मुकाबला करेंगे।

ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फैडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने 1968 के उस वाक्य को याद करते हुए कहा कि आजाद हिंदुस्तान में पुलिस बर्बरता की ऐसी दूसरी कहानी नहीं मिलती है, जिसमें शांतिपूर्ण धरने पर बैठे लोगों पर सीधे गोली चला दी जाए, लेकिन पठानकोट में 19 सितंबर 68 को जो कुछ भी हुआ, वो देश के माथे पर ऐसा कलंक है, जिसे कभी धोया नहीं जा सकता। इतिहास के पन्ने पर ये दिन हमेशा काले दिन के तौर पर याद किया जाएगा। लोकतांत्रिक देश में अपनी मांगो को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन करना हर कर्मचारी का हक है।

ऐसा भी नहीं था कि कर्मचारियों ने कोई आराजकता के हालात पैदा कर दिए हों, बल्कि उस दौरान शहीद रेलकर्मचारी मिनिमम वेज, मंहगाई भत्ता और काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर सिर्फ एक दिन की टोकेन हडताल पर थे। मतलब वो ड्यूटी पर तो आएंगे और हाजिरी भी लगाएंगे, लेकिन काम नहीं करेंगे। मिश्रा ने कहा कि आंदोलनकारी ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे थे, जिससे तत्कालीन सरकार इन निहत्थे कर्मचारियों पर गोली चलवा दे, लेकिन ऐसा हुआ, बिना चेतावनी दिए ही, अचानक पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी। नतीजा ये हुआ कि अकेले पठानकोट में इस गोलीबारी में नौ लोग जख्मी हो गए। इसमें गंभीर रूप से घायल पांच लोगों की तत्काल ही मौत हो गई।

इस गोलीबारी में चार तो रेलकर्मी मारे गए, जबकि एक किन्नर गामा भी इस अंधाधुंध फायरिंग की चपेट में आ गया और उसकी भी मौत हो गई। शहीद हुए रेल कर्मचारियों में कामरेड देवराज, कामरेड राजबहादुर, कामरेड लक्ष्मण शाह और कामरेड गुरदीप सिंह शामिल थे। 1968 की हड़ताल में देश के दूसरे हिस्सों में भी कुछ रेलकर्मी शहीद हुए, जिसमें बोंगाईगांव के परेश सान्याल, मरियानी के रमेन आचार्जी, बीकानेर तो उस समय नार्दर्न रेलवे में ही शामिल था, वहां किशन गोपाल और नई दिल्ली में अर्जुन सिंह शामिल हैं। महामंत्री ने दोहराया कि हम शहीदों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाने देंगे। यही वजह है कि शहीदी दिवस पर हम उन्हें याद करने के साथ ही संघर्ष का संकल्प लेते रहे हैं।

आप सभी जानते हैं कि इस समय पूरे देश में कोरोना महामारी का प्रकोप है। ज्यादातर ट्रेनें भी बंद है, इसलिए आसपास के कुछ लोगों को ही इस शहीदी दिवस कार्यक्रम में शामिल होने को कहा गया है, लेकिन 19 सितंबर को देश भर में जोन, मंडल और शाखा स्तर श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान रेल कर्मचारी काला फीता भी बांधेंगे। जाहिर है कि हालात विपरीत है, लेकिन हम शहीदों को भुला भी नहीं सकते। लिहाजा सोशल डिस्टेंशिग को बनाए रखते हुए इस बार भी रेल कर्मचारी शहीदों को श्रद्धांजलि देने जरूर पहुंचे।