स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्से, जो बदल सकते हैं आपकी जिंदगी

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को भारत में पूरे उत्साह और खुशी के साथ राष्ट्रीय युवा दिवस “युवा दिवस” या “स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस” के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म पौष माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि में वर्ष 1863 में 12 जनवरी को हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर, रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है।

स्वामी जी के प्रेरक किस्से जो आपकी जिंदगी को बदल सकते हैं….

पहला किस्सा

एक बार स्वामी विवेकानंद जी बनारस में मां दुर्गा के मंदिर से दर्शन कर वापस लौट रहे थे, उनेक हांथ में प्रसाद देख बंदरो के झुंड ने स्वामी जी को घेर लिया। स्वामी जी बंदरों के झुंड को देख डर गए और भागने लगे बंदर भी उनका पीछा करने लगे। तभी राह चल रहे एक बुजुर्ग सन्यासी ने हंसते हुए कहा कहा रुको! डरो मत, उनका सामना करो और देखो क्या होता है। तुम जितना भागोगे बंदर तुम्हारे पीछे उतना भागेंगे। सन्यासी की बात सुन स्वामी जी ने पीछे मुड़कर देखा और रुक गए तथा बंदरों की तरफ बढ़ने लगे। यह देखकर बंदर डर गए और एक-एक कर वहां से चले गए।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार

शिकागो धर्म सभा में इस घटना का उल्लेख करते हुए विवेकानंद ने कहा था कि उस दिन यदि मैं उन विकराल बंदरों से डरकर मैं भाग जाता तो आज शायद मैं यहां उपस्थित ना होता। ठीक इसी प्रकार समस्याओं से डरकर भागने के बजाए डटकर उसका मुकाबला करना चाहिए।

दूसरा किस्सा

अमेरिका यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद एक पुल से निकल रहे थे। तभी उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को निशाना लगाते हुए देखा, लेकिन उनमें से कोई भी युवक सही निशाना नहीं लगा पा रहा था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद जी ने स्वयं बंदूक लिया और एक के बाद एक सारे सही निशाने लगाए। ऐसे में जब वहां खड़े लोगों ने पूछा कि आपने ये कैसे किया तो उन्होंने कहा कि जब भी कोई कार्य करें तो उसमें अपनी पूरी एकाग्रता लगा दें, एकदिन आपको सफलता अवश्य मिलेगी।

तीसरा किस्सा

शिकागो सम्मेलन में शामिल होने के लिए स्वामी विवेकानंद अपने गुरू श्रीरामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदामणि मुखोपाध्याय से इजाजत लेने पहुंचे। उन्होंने कहा कि मैं विदेश जाना चाहता हूं। माता ने कहा कि यदि मैं जाने की इजाजत नहीं दूंगी तो क्या तुम नहीं जाओगे। इसे सुन स्वामी विवेकानंद कुछ नहीं बोले और चुपचाप बैठ गए। शारदामणि ने उनकी तरफ इशारा करते हुए कहा कि अच्छा एक काम करो मुझे वो सामने रखा चाकू दे दो, सब्जी काटना है।

विवेकानंद जी तुरंत उठे और उन्होंने माता को चाकू पकड़ाया। शारदामणि ने कहा कि तुमने मेरा ये काम किया है इसलिए तुम विदेश जा सकते हो। विवेकानंद जी को कुछ समझ नहीं आया, तब माता ने कहा कि यदि तुम चाकू को उसकी नोक के बजाए मूठ से उठाकर देते तो मुझे अच्छा नहीं लगता। इससे यह साबित होता है कि तुम किसी तुम अपने मन, वचन और कर्म से किसी का बुरा नहीं करोगे और हमेशा अच्छे कार्यों में संलग्न रहोगे।

चौथा किस्सा

एक बार विवेकानंद जी अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस के पास आए और पूछा कि आप हर समय भगवान की बात करते रहते हैं इसका प्रमाण क्या है, मुझे सबूत दिखाइए। रामकृष्ण परमहंस बहुत सरल स्वभाव के एक रहस्यवादी इंसान थे। विवेकानंद का यह सवाल सुन वह मुस्कुराने लगे और उन्होंने कहा कि मैं इस बात का प्रमाण हूं कि ईश्वर मौजूद हैं। रामकृष्ण की यह बात सुन विवेकानंद सोच में पड़ गए और वापस चले गए। तीन दिन बाद वे वापस आए और उन्होंने कहा कि क्या आप मुझे ईश्वर को दिखा सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के इतना कहते ही परमहंस ने उनकी छाती पर पैर रखा और वह एक निश्चित अवधि में चले गए, जहां वह मन की सीमाओं से परे थे। लगभग 12 घंटे बाद भौतिक अनुभवों में आने के बाद वह नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद बन गए और कभी दूसरा प्रश्न नहीं पूछा।

पांचवा किस्सा

स्वामी विवेकानंद को एक आदर्श के रूप में स्थापित होते देख एक विदेशी महिला ने उनसे विवाह करने का मन बना लिया था। एक कार्यक्रम के दौरान वह स्वामी जी के पास पहुंची और निर्भीकता से उसने कहा कि मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। इसे सुन स्वामी जी अचंभित हो गए और उन्होंने कहा कि मैं सन्यासी हूं, शादी नहीं कर सकता और तुम मुझसे शादी क्यों करना चाहती हो? महिला ने कहा कि मैं आपके जैसा तेजस्वी और गौरवाशाली पुत्र चाहती हूं और ये तभी संभव है जब आप मुझसे शादी करेंगे। इतना सुनते ही स्वामी विवेकानंद ने विनम्रता पूर्वक कहा कि, ठीक है मैं आज से आपका पुत्र और आप मेरी माता। अब आपको मेरे जैसा ही एक बेटा मिल गया।

उनके इस जवाब को सुन महिला स्वामी जी के चरणों में गिर गई और कहने लगी कि आपने अपने सन्यासी जीवन को बनाए रखते हुए मेरी समस्या का हल कर दिया। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि एक सच्चा पुरुष वही है जो हर महिला के लिए अपने अंदर मातृत्व की भावना रखे और महिलाओं का सम्मान करे।