चीन से तल्ख होते रिश्तों के बीच जोर पकड़ती स्वदेशी राखी

पंकज शर्मा । ज्वालामुखी
चीन से तल्ख होते रिश्तों के बीच इस बार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते रक्षाबंधन पर चीनी राखियां नजर नहीं आ रहीं। ज्वालामुखी उपमण्डल में भी चीनी राखियों का बहिष्कार और स्वदेशी राखी की मुहिम जोर पकडऩे लगी है। कई संगठन स्वदेशी राखी को प्रमोट करने के लिए आगे आए हैं। ज्वालामुखी के व्यापारियों ने भी ग्राहकों की मंशा को भांपते हुए इस बार चीनी राखियों के बजाय स्वदेशी राखी बेचने पर जोर दे रहे हैं। भारत-चीन सीमा पर तनाव का असर यहां के पर्व-त्यौहारों पर भी पड़ा है। यही वजह है कि इस बार चीनी नहीं स्वदेशी राखी की मांग बढ़ गई है।
  • बाजार से गायब चीनी राखी लेकिन बाजार मंदा
एक अनुमान के अनुसार राखी पर करीब छह हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है। इसमें अकेले चीन की हिस्सेदारी करीब चार हजार करोड़ रुपए है। राखी बनाने के लिए काम में आने वाली सामग्री जैसे धागा, मोती, फोम एवं सजावटी सामग्री चीन से आती है। चीनी राखियां सस्ती व देखने में आकर्षक होती थी।
इस बार लॉकडाउन के चलते परिवहन में हो रही दिक्कत का असर राखियों की कीमतों पर पड़ा है। व्यापारियों की मानें तो राखियां इस बार 15 से 20 फीसदी महंगी दर पर बिक रही है। जरी, धागे व मोती में पिरोई राखियों की मांग अधिक है। स्टोन व ब्रेसलेट वाली राखियों की डिमांड भी है।
व्यवसायी सुमन्यु सूद ने बताया कि इस बार बाजार में चीन की राखियां बिल्कुल नहीं हैं। राखी से पहले हर बार बाजार सजता है लेकिन इस बार बहुत कम दुकानें लगी हैं। ऐसे में इस बार बिक्री कम रहने की संभावना है। कोरोना, लॉकडाउन व कूरियर सेवाओं की कमी का सीधा असर राखी बाजार पर पड़ा है।