भंगाल रियासत के पाल वंश शासकों ने निर्मित किया था जोगिन्दर नगर का ऐतिहासिक करनपुर किला, पढ़े पूरी जानकारी

जतिन लटावा। जोगिंद्रनगर

जोगिन्दर नगर के ऐतिहासिक करनपुर किले का निर्माण भंगाल रियासत के पालवंश शासकों ने किया था। इतिहास के पन्नों को खंगालें तो भंगाल रियासत का अस्तित्व लगभग एक से डेढ हजार वर्ष तक माना जाता है। सन एक हजार इस्वी से लेकर 1750 तक भंगाल रियासत का अस्तित्व माना जाता है। भंगाल रियासत में बड़ा भंगाल, छोटा भंगाल, पपरोला, लंदोह तथा रजेर क्षेत्र शामिल रहे हैं। भंगाल रियासत की राजधानी बीड़ रही है। लेकिन समय-समय पर इस रियासत पर हुए हमलों के कारण यह रियासत निरंतर सिकुड़ती गई तथा इस रियासत के अंतिम शासक मानपाल 1749 की मृत्यु के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। यह रियासत मंडी, कुल्लू, कांगड़ा, गुलेर इत्यादि रियासतों का हिस्सा बन गई। ऐतिहासिक करनपुर किले की बात करें तो इसका निर्माण पालवंश शासकों में से एक रहे राजा करन ने किया माना जाता है तथा राजा करन के कारण ही यह करनपुर किला से प्रसिद्ध हुआ।

मंडी रियासत के अनेक शासकों ने भंगाल रियासत पर अपना परचम लहराने के लिये समय-समय पर आक्रमण किये, लेकिन कुल्लू रियासत के राजाओं की सहायता से भंगाल रियासत अपना अस्तित्व बनाये रखने में कुछ समय तक जरूर कामयाब रही। लेकिन बाद में यह रियासत कई रियासतों का हिस्सा बनकर इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई। भंगाल रियासत के शासक पृथी पाल 1710 जो कि मंडी रियासत के राजा सिद्ध सेन के संबंधी थे की हत्या राजा सिद्ध सेन ने ही कर दी थी तथा हत्या करने के बाद दमदमा महल में पृथी पाल के सिर को दफन कर दिया था। इसके बाद राजा सिद्ध सेन ने भंगाल रियासत पर कब्जा करने के लिये अपनी सेना को भेजा, लेकिन पृथीपाल की माता ने कुल्लू के राजा मान सिंह की सहायता से उनके इस आक्रमण को विफल कर दिया था। इस बीच राजा मान सिंह ने इस रियासत के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया।

राजा पृथी पाल की मृत्यु के बाद रघुनाथ पाल 1720 भंगाल रियासत के शासक बने। इस दौरान भी राजा सिद्ध सेन ने करनपुर किले को हथियाने के लिये लगातार हमले किये लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए। कहते हैं कि राजा सिद्ध सेन के बाद मंडी रियासत के शासक बने उनके पौत्र शमशेर सेन ने करनपुर किले को उस समय अपने अधीन कर लिया जब राजा रघुनाथ पाल मुगल वायसराय से मिलने पंजाब गये हुए थे। वर्ष 1735 में रघुनाथ पाल की मृत्यु के बाद दलेल पाल भंगाल रियासत के राजा बने। इस दौरान भी भंगाल रियासत पर मंडी, कुल्लू, कहलूर, नालागढ़, गुलेर, जसवां इत्यादि रियासतों के शासकों ने लगातार हमले किये लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए। परन्तु वर्ष 1749 को दलेल पाल की मौत हो गई तथा भंगाल रियासत के बड़े भू-भाग पर मंडी व कुल्लू के शासकों ने अपना एकाधिकार जमा लिया।

इतिहास के पन्नें बताते हैं कि राजा दलेल पाल के बाद वर्ष 1749 में मान पाल भंगाल रियासत के शासक बने लेकिन उनके पास अब लंदोहए पपरोला तथा रजेर का इलाका ही शेष रह गया था। मान पाल जब मुगल बादशाह से मिलने दिल्ली जा रहे थे तो इस बीच उनका निधन हो गया तथा भंगाल रियासत के शेष बचे क्षेत्रों में भी कांगड़ा व गुलेर रियासत के शासकों ने अपना परचम लहरा दिया तथा भंगाल रिसासत का अस्तित्व इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया। जोगिन्दर नगर का यह ऐतिहासिक करनपुर किला जोगिन्दर नगर कस्बे से महज डेढ या दो किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिये दो रास्ते उपलब्ध हैं।

पहला रास्ता जोगिन्दर नगर के गुगली खड्ड पुल से पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़ते हुए जाता है। जबकि दूसरा रास्ता गलू पट्ट गांव से होते हुए आता है। दूसरा रास्ता सडक़ से जुड़ा हुआ है तथा महज 300 या 400 मीटर का पैदल रास्ता तय कर किले पर पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में यह किला एक खंडहर नुमा स्थान बन चुका है लेकिन अभी भी इस किले की मजबूत दीवारें इसके इतिहास की यादों को ताजा कर देती हैं। करनपुर किले से समूची जोगिन्दर नगर घाटी को न केवल देखा जा सकता है बल्कि चारों ओर के नैसर्गिक सौंदर्य को भी निहारा जा सकता है। इसी किले से महज 200 या 250 मीटर की दूरी पर ऐतिहासिक बंडेरी मां का भी मंदिर है। मंदिर के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य भी मन को सुकून प्रदान करने वाला है।