एक ऐसा पेड़, जिसकी सुरक्षा में 24 घंटे तैनात रहती है पुलिस, हर साल खर्च होते हैं 15 लाख रुपये

बोधिवृक्ष के नाम के पीपल के पेड़ के लिए उच्चस्तरीय सुरक्षा

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

जेड प्लस सुरक्षा, वाई प्लस सुरक्षा… मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक की सुरक्षा के बारे में जब बात होती है, तो हम इन श्रेणियों के बारे में चर्चा करते हैं। सेलिब्रेटी और बिजनेसमैन को भी नियम और शर्तों के अधीन उच्च श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है, लेकिन आपसे अगर कहा जाए कि किसी पेड़ को भी 24 घंटे सुरक्षा दी जाती है तो यह सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा न! लेकिन यह बिलकुल सच है। इस वीआईपी पेड़ की सुरक्षा में सातों दिन 24 घंटे जवान तैनात रहते हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और विदिशा के बीच सलामतपुर की पहाड़ी पर लगा है, यह वीआईपी पेड़।

आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि मध्य प्रदेश की सरकार इस पेड़ की देखरेख पर हर साल 12 से 15 लाख रुपये तक खर्च करती है। 100 एकड़ की पहाड़ी पर लोहे की लगभग 15 फीट ऊंची जाली के अंदर लहलहाता नजर आता है, यह पेड़। यह एक पीपल का पेड़ है, जिसे बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है। इस पेड़ की सिंचाई के लिए अलग से टैंकर की व्यवस्था है। पेड़ बीमार न हो, इसके लिए कृषि विभाग के पदाधिकारी अक्सर दौरा करने आते रहते हैं. पेड़ के पत्ते सूखने पर प्रशासन चौकन्ना हो जाता है। यह सब डीएम की? निगरानी में होता है। पेड़ तक पहुंचने के लिए भोपाल-विदिशा हाईवे से पहाड़ी तक पक्की सडक़ बनाई गई है। यहां देसी और विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं। साल 2012 में जब श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे भारत दौरे पर आए थे, उसी दौरान उन्होंने यह पेड़ लगाया था।

बोधि वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ

531 ईसा वर्ष पूर्व मूलत: बोधि वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. हालांकि यह मूलबोधि वृक्ष नहीं है। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बोधि वृक्ष की एक टहनी देकर श्रीलंका भेजा था। उन्होंने वह बोधि वृक्ष श्रीलंका के अनुराधापुरा में लगाया था, जो आज भी मौजूद है।

बहरहाल, जिस बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, वह मूल पेड़ असल में बिहार के गया जिले में है। बोधगया में मौजूद इस पेड़ को कई बार नष्ट करने का भी प्रयास किया जा चुका है, लेकिन कहा जाता है कि हर बार नया पेड़ उगता रहा। वर्ष 1876 में यह पेड़ प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हो गया था। फिर 1880 में अंग्रेज अफसर लॉर्ड कनिंघम ने श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की शाखा/टहनी मंगवाई और उसे बोधगया में फिर से लगवाया। तब से वह पवित्र बोधि वृक्ष आज भी वहां मौजूद है।