क्यों मनाई जाती है होली? जानिए इसका इतिहास और महत्व

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

हम जैसे ही होली शब्द को सुनते हैं, हमारे मन में एक अलग ही भाव उत्पन्न हो जाता है, यह भाव हर्ष और उल्लास का होता है। होली बहुत ही चर्चित त्यौहार है, यह त्योहार लोग बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें लोग अपने पुराने दुश्मनी को भूल जाते हैं और अपनी जिंदगी की एक नए सिरे से शुरुआत करना चाहते हैं।

ऐसे में होली को हम सभी आज के इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि आखिर यह होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है इस होली के त्यौहार के पीछे की पौराणिक मान्यता क्या है और इस त्यौहार को क्या अन्य देशों में भी मनाया जाता है।

आइए जानते हैं कि होली का त्यौहार लोग किस प्रकार से मनाते हैं और इसकी क्या-क्या विधियां होती हैं। होली के उपलक्ष में इस लेख को प्रस्तुत करने का हमारा मुख्य उद्देश्य है कि आप भी होली पर्व के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें।

होली के त्यौहार का इतिहास…

होली का इतिहास काफी पुराना है। कई पुरातन धार्मिक पुस्तकों में होली का उल्लेख मिलता है। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपि और ग्रंथों में भी होली के त्यौहार का उल्लेख मिलता है। यहां तक कि प्राचीन काल के कई मंदिरों की दीवारों पर भी होली के चित्र के हुए दिखाई पड़ते हैं।

16वीं शताब्दी में विजयनगर की राजधानी हंपी में बनाए गए एक मंदिर में भी होली के कई सारे दृश्य दीवारों पर उकेरे गए हैं, जिसमें राजकुमार राजकुमारियों सहित दासियों को भी हाथ में पिचकारी लिए हुए एक दूसरे को रंगते हुए दिखाया गया है। 300 वर्ष पुराना विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित अभिलेख में होली का उल्लेख है।

इतिहासकारों का कहना है कि होली का परवाह आर्यों में भी प्रचलित था लेकिन अब यह पूर्वी भारत में ही ज्यादातर मनाया जाता है।

अलबरूनी जो सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक थे, इन्होंने भी अपनी ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। इस तरीके से हिंदुओं के अतिरिक्त भारत के कई मुस्लिम कवियों ने भी अपनी रचनाओं में होली का उल्लेख करके बताया है कि होली का त्योहार केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि मुसलमानों का भी त्योहार है, इसे मुसलमान भी मनाते हैं।

यहां तक कि मुगल काल के दौरान साहित्यकार द्वारा किए गए रचना में अकबर का जोधा बाई के साथ, जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। इसकी एक झलक अलवर संग्रहालय के एक चित्र में भी देख सकते हैं, जहां पर जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है।

इस तरीके से मुगल काल में भी होली का त्यौहार काफी प्रचलित था और वह भी होली को धूमधाम से और उमंग से मनाया करते थे। कहा जाता है कि शाहजहां के समय तो होली खेलने का अंदाज ही बदल गया। इतिहास में वर्णन किया गया है कि शाहजहां के जमाने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी कहा जाता था, जिसका मतलब रंगों का बौछार होता है।

मध्ययुगीन हिंदी साहित्य में भी कृष्ण लीलाओं में होली का काफी विस्तृत वर्णन देखने को मिलता है। इसके अलावा और भी कई सारे प्राचीन साक्ष्य मिले हैं, जो बताता है कि होली का त्योहार प्राचीन काल से ही सभी धर्मों के लोग मनाते आ रहे हैं।

होली का त्यौहार क्या है?

जैसा कि आप सभी जानते हैं होली का त्यौहार हमारे लिए बहुत ही प्रसन्नता का त्यौहार होता है। होली का नाम सुनते ही हमारे हृदय में हर्ष उल्लास की भावना उत्पन्न हो जाती है। होली के त्यौहार के दिन हम सभी लोग अपने अपने पुराने गिले शिकवे भुला कर के एक नई तरीके से अपने जीवन की शुरुआत करते हैं। होली एक रंगों का त्योहार है, होली के दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग लगा कर के अपनी खुशियों को एक दूसरे के समक्ष प्रकट करते हैं।

होली के त्यौहार के दिन सभी बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति सभी मिलकर के इस त्यौहार का लुफ्त उठाते हैं। होली के त्यौहार को हिंदुओं का सबसे प्रमुख और प्रचलित त्योहारों में से एक माना जाता है, परंतु इसे संपूर्ण भारत में अनेक धर्मों के लोग एक साथ मिलकर के बड़ी ही प्रसन्नता और प्रेम भाव के साथ मनाते हैं।

होली के त्यौहार एक बहुत ही अच्छा त्योहार माना जाता है। क्योंकि आज के दिन सभी लोग के मन में एक दूसरे के प्रति स्नेह का भाव बढ़ जाता है और यह स्नेह की भावना उन्हें एक दूसरे के करीब लाती है।

होली का त्योहार इतना प्रचलित हो चुका है कि भारतवर्ष में अनेक किसान लोग इस त्यौहार को अपनी फसल काटने की खुशी में भी मनाते हैं। इसका अर्थ यह है कि भारत में होली न केवल होली के दिन ही अपितु किसानों की फसल पैदावार के दिन भी होती है।

जैसा कि आपको बताया होली का त्यौहार एक बहुत ही रंगीला त्यौहार है तो ऐसे में इस दिन सभी लोग बहुत ही सुंदर और अलग-अलग रंगों से सजे रंग बिरंगे लगते हैं।

इस त्यौहार के दौरान प्रकृति का दृश्य भी लोगों के द्वारा सजे इस रंग रूप के कारण काफी सुंदर नजर आता है। होली के दिन सभी लोग एक दूसरे के गले लगते हैं और एक दूसरे को रंग या गुलाल लगाते हैं।

होली कब मनाई जाती है?

होली का पर्व हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। क्योंकि आज के दिन सभी लोग बहुत ही प्रेम पूर्वक व्यवहार करते हैं। सभी लोग आज के दिन एक दूसरे को बहुत ही प्रसन्नता पूर्वक रंग लगाते हैं और उन से गले मिलते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में होली का दिवस प्रत्येक वर्ष में एक बार मनाया जाता है।

होली का दिवस प्रत्येक वर्ष वसंत ऋतु के समय फाल्गुन माह में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हम यदि अन्य शब्दों में कहें तो यह दिवस मार्च महीने में मनाया जाता है। यह त्यौहार खुशी का त्यौहार माना जाता है।

इस त्यौहार को वसंत ऋतु के समय फाल्गुन मास के अंतिम दिन की होलिका दहन से मनाया जाता है, इस त्यौहार को होलिका दहन से ही शुरू कर दिया जाता है और लोग आपस में गले मिलते हैं और एक दूसरे को रंग लगाते हैं।

होली के पर्व के संबंध में पौराणिक मान्यता….

एक समय की बात है जब इस पूरी धरती पर एक बहुत ही आतंकी असुर राज हिरण्यकश्यप राज करना चाहता था। वह संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ-साथ तीनों लोगों पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता था। इसके लिए उसने पृथ्वी वासियों को काफी हद तक डराया और उनसे यह कहता था कि वह ही भगवान है और वह लोगों से अपनी जबरदस्ती पूजा करवाता था।

लोग अपने जीवन की रक्षा में उस अहंकारी असुर की पूजा करते थे। परंतु हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रहलाद था, जो कि इस समय में भक्त प्रहलाद के नाम से प्रसिद्ध है। भक्त प्रहलाद अपने पिता के अहंकार के कारण उनकी कभी भी पूजा नहीं की। भक्त प्रह्लाद ने अपने भगवान के रूप में श्री हरि विष्णु जी को चुना और वह श्री हरि विष्णु जी की ही पूजा अर्चना करता था।

भक्त प्रहलाद की इस अटूट निष्ठा की भक्ति से उसके पिता को बहुत ही गुस्सा आता था। धीरे-धीरे उसके पिता उनसे नफरत करने लगे और वह अपने अहंकार में इतना अंधा हो चुका था कि कई बार तो भक्त प्रहलाद की जान लेने का भी प्रयास किया था, परंतु वह असफल रहा। भक्त प्रहलाद की भक्ति से श्री हरि विष्णु जी बहुत प्रसन्न थे और विष्णु भगवान भक्त प्रहलाद की सदैव रक्षा करते थे।

हिरण्यकश्यप को एक वरदान प्राप्त था, यह वरदान ऐसा था कि “ना तो उसे कोई मानव मार सकता है और ना कोई जानवर, न हीं घर में न हीं बाहर, न ही किसी शस्त्र से और ना ही किसी अस्त्र से, ना इस धरती पर और ना आकाश में, ना ही दिन में और ना ही रात में” अतः उसे ऐसा वरदान प्राप्त होने के कारण कोई भी देवता या असुर कोई भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था। अपने इसी वरदान के कारण वह किसी से भी नहीं डरता था और बिना सोचे समझे कहीं पर भी आक्रमण कर देता था।

हिरण्यकश्यप भक्त प्रहलाद की जान लेने के अनेक प्रयास किए, परंतु वह सफल रहा। इसके पश्चात उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, उसकी बहन होलिका को भी ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि छू तक नहीं सकती। इसी कारण होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर के जलती चिता में बैठ गई।

जैसा कि हमने आपको बताया कि होलिका को भी वरदान प्राप्त था, परंतु उसे ऐसा वरदान प्राप्त था कि जब वह अकेली होगी, तब उसे ही अग्नि नहीं छू सकती। परंतु होली का तो उस चिता पर भक्त प्रहलाद के साथ बैठी थी, इसीलिए वरदान प्राप्त होने के बावजूद भी वह जल गई और भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु जी के द्वारा बचा लिया गया।

होलिका के जल जाने के उपरांत एक बार फिर से हिरण कश्यप भक्त प्रहलाद की हत्या करने का प्रयास किया, परंतु श्री हरि विष्णु जी ने हिरण्यकश्यप को नरसिंह अवतार धारण करके सभी वरदान के विपरीत उसे अपने घुटनों पर सुलाकर अपने नाखूनों से उसकी हत्या कर दी, इस प्रकार से हिरण्यकश्यप की मृत्यु भी हो गई और को प्राप्त वरदान भी खंडित नहीं हुआ।

इस कहानी के अनुसार होली का पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की मृत्यु के उपलक्ष में मनाया जाता है, इसी कारण होली के त्यौहार के एक रात्रि पहले होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन से यह ज्ञान होता है कि किस प्रकार से अनेकों वर्षों पहले बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। अर्थात होली के दिन को हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन के उपलक्ष में मनाया जाता है।

होली में रंग क्यों खेला जाता है?

पुरानी कथाओं के अनुसार हम यह तो जानते हैं कि होलिका का दहन होने के बाद से होली का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन होली के दिन रंग लगाना भी एक अपना अलग महत्व रखता है। होली के दिन रंग खेलने की परंपरा भगवान श्री कृष्ण ने शुरू की थी।

कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों और गोपियों के साथ रंगों के साथ होली मनाते थे और तब से रंगों के साथ होली के त्योहार को मनाने की परंपरा शुरू हो गई। इसके अलावा होली के दिन रंग लगाना एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करना भी होता है।

एक दूसरे को रंग का टीका लगाकर हम एक दूसरे के प्रति मन के बैर को दूर करते हैं और प्यार से रहने की कोशिश करते हैं। आपका चाहे कितना भी बड़ा दुश्मन क्यों ना होली के दिन उसे रंग से टीका लगाकर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ हैप्पी होली बोल के दुश्मनी को खत्म किया जा सकता है।

होली के दिन एक दूसरे को रंग लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है‌। पहले के समय में पलाश के पेड़ के फूलों से रंग बनाए जाते थे, जिसे गुलाल के रूप में जाना जाता था। वह रंग त्वचा के लिए बिल्कुल भी हानिकारक नहीं हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ त्योहारों को मनाने के तरीके भी बदल गए, उसी के साथ होली के रंगों में भी काफी बदलाव आ गया।

आज के समय में रंग को बनाने के लिए कड़े रसायन का इस्तेमाल किया जाता है, जो त्वचा को नुकसान करते हैं और कुछ रंग ऐसे होते हैं, जो त्वचा से कई दिनों तक नहीं छूटते। इन्हीं सब कारण से बहुत से लोगों को होली के दिन रंग खेलना पसंद नहीं होता। लेकिन हमें समझना चाहिए कि होली प्यार और उमंग से एक दूसरे के साथ उत्सव मनाने का त्यौहार होता है। इसीलिए होली को सच्ची भावनाओं के साथ खेलना चाहिए।