मणिमहेश कैलाश डलझील में लगाई भक्तों ने डुबकी

शैलेश शर्मा। चम्बा

आखिरकार लम्बी जदोजहत के बाद मणिमहेश कैलाश मानसरोवर में भगवान शिव के अनुयायो ने आज सांय पवित्र मणिमहेश कैलाश की सदियों से चली आ रही परंपरा को बरकरार रखते हुए डलझील में पहला स्नान कर इस परम्परा को बखूबी निभाया है। बताते चले कि एक मान्यता अनुसार इस पवित्र यात्रा को तभी ही सार्थक माना जाता है जब शिव भगवान के चेले इस डल झील में सर्वपर्थम पवित्र डलझील को तोड़ते हुए स्नान करते है। बताते चले कि सदियों से यह प्रथा ऐसे ही चली आ रही है जिसमें सबसे पहले दस नमी अखाड़े के साधु संत इस पवित्र मणिमहेश यात्रा के लिए प्रस्थान करते है तो वही ठीक दो दिनों के बाद नाथों के नाथ चर्पटनाथ के पुजारी भगवान शिव के चरणों के पदचिन्हों अपनी प्राचीन छड़ी के रूप में कंधो पर उठाकर बिना रुके कैलाश तक लेकर जाते है।

यह भी बता दे कि श्री कृष्ण जमष्टमी से लेकर राधाष्टमी तक यह यात्रा निरंतर जारी रहती है और इसमें भी सबसे पहले जम्मू कश्मीर के जिला डोडा किस्तवाड़, भद्रवाह के लोग इस पवित्र स्नान को सबसे पहले करते है पर इस बार बार कोरोना महामारी के चलते जिला प्रशासन ने केवल उन्हीं लोगों को आगे मणिमहेश जाने की अनुमति दी थी जिनका कि किसी आस्था से जुड़ा सदियों पुराण इतिहास रहा था। यह दुर्गम तस्वीरें आज सांय उस समय की है जब शिव भक्तों ने इस पवित्र डलझील में सर्वपर्थम डुबकी लगाकर इस सदियों पुराने इतिहास और परम्परा को बनाये रखा।

हालंकि कई लोग इस परंपरा को निभाने चौरासी भरमौर के बाद आगे जाने की योजना बना रहे थे पर जिला प्रशासन के कड़े निर्देशों के चले और उनकी नाके बंदी के चलते उनको भगवान शिव और कैलाश के दर्शनो से वंचित रहना पड़ा था।