सैनिक के घर पैदा हुई दिव्यांग बेटी ने किया कमाल

भूषण शर्मा। नूरपुर

ज्वाली विधानसभा की पंचायत दरगाटी में सैनिक के घर पैदा हुई बेटी काव्य वर्षा ने वो कमाल कर दिखाया है जो दूसरों के लिए एक सबक वन गया है। काव्य वर्षा को करीबन 8 साल की आयु में ऐसा बुखार आया कि उसकी जिंदगी ही बदली दी। तब उसकी बचने की उम्मीद ही कम दिखाई देती थी पर जिस पर ईश्वर की मेहरबानी होती है उसे कुछ नहीं हो सकता। मगर इस बुखार ने काव्य को एक दिव्यांग बना दिया और तब से लेकर आज तक उसे घर पर ही रहने को मजबूर कर दिया। घरवालों ने काव्य की परवरिश बहुत ही सहरानीय तरीके से की उसे कभी महसूस नहीं होने दिया कि वह दूसरे से कम है। काव्य चल फिर नहीं सकती है। इसके चलते वह पढ़ नहीं सकी, मगर काव्य ने घर में रह कर मोबाइल से पढ़ना लिखना सीखा और धीरे-धीरे कविताएं और गाने लिखना सीख लिया। जो अपने आप में एक करिश्मा से कम नहीं है। आज काव्य द्वारा लिखी कविताएं कई मैगजीन में छप रही है और जल्द ही इनके द्वारा लिखे गाने भी आने वाले हैं।

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काव्य वर्षा ने बताया कि उसे वचपन से पढ़ने लिखने का बहुत शौक था मगर इस बिमारी के चलते सब अधूरा रह गया। मेरी हिम्मत, सोच ने हार नहीं मानी और मोबाइल से पढ़ना लिखना शुरू किया और इनकी मदद से धीरे धीरे सीख गई। काव्य ज्यादा देर बैठ नहीं सकती, ज्यादा देर लिख नहीं सकती फिर भी हिम्मत नहीं हारी और मैंने सोच और विचारों को कविताएं और गानों के माध्यम से प्रकट करना शुरू किया। क्योंकि जब सोचती थी कि हनुमान चालीसा भी तो किसी ने लिखा है। बस इसी प्ररेणा से कुछ धार्मिक और कुछ ओर सोच कर लिखना शुरू कर देती थी। आज मेरे द्वारा लिखी कविताएं कई मैगजीन में छप रही है और बहुत जल्द मेरे द्वारा लिखे गाने भी आ जाएंगे। उनको अभी नहीं बता सकती हूं। काव्य ने यह भी कहा कि अगर लग्न, जनून, हिम्मत और खुद पर विश्वास हो तो मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान हो सकता है काव्य कहती है कि मेरे पास तो केवल दो हाथ है तो यह कर रही हूं। जिनके पास मुझसे ज्यादा अगर शरीर ठीक है वो कुछ भी कर सकते हैं। मेरी देखभाल मेरी माता करती है और साथ मेरी भाभी हमेशा मेरी हिम्मत बढ़ती है।

काव्य की माता पवन कुमारी ने कहा कि हमारी बेटी हमारे लिए भगवान का एक तौफा है और यह मेरे बच्चों से अलग ही है। काव्य के पिता फौज से रिटायर हो कर कहीं और नौकारी करते हैं। सरकार की तरफ से करीबन पौने दो साल से काव्य को पैंशन सुविधा शुरू हुई है वाकी ओर कुछ नहीं।