प्रसिद्ध कथक नर्तक दिनेश गुप्ता से जाने गुरु शिष्य की परंपरा

उमेश भारद्वाज। सुंदरनगर

भारतवर्ष अपनी गुरु शिष्य परंपरा के लिए विश्वविख्यात है। इस प्राचीन परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सुंदरनगर के प्रसिद्ध कथक नर्तक एवं शिक्षक दिनेश गुप्ता पिछले कई वर्षों से क्षेत्र कई बच्चों को कथक की बारीकियां सिखा रहे हैं। गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर दिनेश गुप्ता ने कहा कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गुरुमुखी विद्या है और वर्षों से गायन,वादन व नृत्य के क्षेत्र में गुरु शिष्य परंपरा चली आ रही है।

उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से गुरु की महिमा को अनंत कहां गया है। देवताओं, राजाओं व महापुरुषों ने गुरु के महत्व को हृदय से स्वीकार किया है। प्राचीन काल में आश्रम व्यवस्था होने के कारण यह आवश्यक था कि वह जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों में आश्रम में रहकर विद्या ग्रहण करें।

गुरु एक-एक बारीकी को तराश कर शिष्य को बनाता है हीरा
दिनेश गुुप्ता ने कहा कि प्राचीन काल में संगीत की शिक्षा व्यक्तिगत रूप से दी जाती थी, जिसे गुरु शिष्य परंपरा कहा जाता था। लेकिन समय परिवर्तन के साथ-साथ आजकल तालीम स्कूल में लेने लगे हैं। उन्होंने कहा कि गुरु एक-एक बारीकी को तराश कर उसे हीरा बना देता था। यही कारण है कि आज स्कूल व कॉलेज की शिक्षा ग्रहण कर एक या दो लोग ही अच्छे कलाकार बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज के विद्यार्थी समझते हैं कि 1 या 2 वर्ष में वे संपूर्ण कला को ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन वास्तव में यह संभव नहीं है।

15 वर्ष के अभ्यास से अभी तक सिखा अंश मात्र
दिनेश गुप्ता ने कहा कि स्वयं उन्होंने 15 वर्ष नृत्य का अभ्यास किया और साथ में नृत्य विशरद व डिप्लोमा ऑनर्स कथक केंद्र नई दिल्ली तथा भास्कर प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से स्नातकोत्तर इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से पूर्ण की। इससे भी नृत्य का कुछ अंश तक समझ पाए हैं। उन्होंने आज के परिवेश को लेकर विद्यार्थियों से कहा कि यदि बच्चे संगीत की शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं, तो अपने तन-मन-धन से गुरु के साथ उसकी परछाई बनकर रहें। इससे संभवत बच्चे भी वैसे ही बन पाएंगे, जैसे उनके गुरु हैं।

गुरु पूर्णिमा पर शास्त्रीय संगीत के माध्यम से मनाए जाते हैं कई उत्सव
दिनेश गुप्ता ने कहा कि शास्त्रीय नृत्य गायन वादन शैलियों में भारतवर्ष में गुरु पूर्णिमा पर बहुत से उत्सव मनाए जाते हैं, जिसमें गुरु की पूजा-अर्चना कर उनसे आशीर्वाद दिया जाता है। शास्त्रीय संगीत में गंडा बांधने की भी परंपरा रही है। इस परंपरा में गुरु शिष्य और शिष्य गुरु के हाथ में कंगना बांध कर तमाम उम्र शिष्य बने रहने की सौगंध खाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में आज जो भी उच्च कोटि के कलाकार हैं, वह गुरु के हाथों से ही निकल कर आए हैं। दिनेश ने कहा कि यदि शास्त्रीय संगीत को जीवित रखना है, तो संभवत हमें गुरु शिष्य परंपरा का आदर व निर्वाह करते रहना पड़ेगा।