अगर स्वास्थ्य केंद्र में मिल जाता प्राथमिक उपचार, तो शायद बच जाती पत्नी की जान

तलविंदर सिंह। बनीखेत

उपमंडल डलहौजी के तहत गांव कंडा बनीखेत के तिलक राज का कहना है कि मेरी पत्नी की तबीयत खराब होने पर उसे स्वास्थ्य केंद्र बनीखेत में सुबह 600 बजे ले आए, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र में एक घंटा के इंतजार के बाद कोई भी स्वास्थ्य कर्मी नहीं मिला। पत्नी की बिगड़ती हालत को देखकर हम उन्हें ककिरा अस्पताल ले गए, लेकिन वहां हालत बिगड़ती देख हमें पठानकोट के लिए कहां गयौ दर्द को ना सहते हुए उनकी पत्नी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। कंडा गांव वासियों में स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ रोष है। गांव वासियों का कहना है कि सिर्फ कोरोना काल में सिर्फ कोरोना ही एक बीमारी बनकर रह गई है बाकी बीमारियों के बारे में इन अस्पतालों में कोई भी इलाज नहीं है स इस कोरोना महामारी ने वर्तमान आपदा बन पूरे विश्व की तमाम सेवाओं को धराशाही करके रखा हुआ है।

ऐसे में स्वास्थ्य विभाग पूरे दलबल के साथ महामारी के खिलाफ पहली पंक्ति में युद्ध लड़ रहा है। महामारी के चलते अस्पतालों इत्यादि में कोरोनावायरस सुविधाओं को आरक्षित रखा गया है परंतु सवाल यह है कि इस काल में अन्य तरह के रोगी व अन्य बीमारियां समाप्त हो गई है। आज पूरा तंत्र सिर्फ कोरोना के उन्मूलन के लिए ही कार्य करता है ऐसा लग रहा है कि इस कड़ी में कोरोना के सिवाय स्वास्थ्य केंद्रों में अन्य बीमारी का कोई भी इलाज नहीं हो सकता। इसके बारे में जब बीएमओ सतीश फोतेदार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वैसे तो हर स्वास्थ्य केंद्र में हमारा स्टाफ मौजूद है। उन्होंने कहा कि बनीखेत में अभी 2 डाक्टर स्टाफ नर्स है, लेकिन एक डाक्टर छुट्टी पर होने पर स्टाफ की कमी की वजह से यहां के दूसरे डाक्टर की ड्यूटी डलहौजी स्वास्थ्य केंद्र में लगाई गई है। इसलिए 10 किलोमीटर के दायरे में स्टाफ की कमी होने पर स्टाफ की ड्यूटी डलहौजी या बाथरी कहीं भी लगाई जा सकती है। इसलिए आपातकालीन मरीज को डलहौजी या बाथरी अस्पताल में ले जाकर उनका इलाज किया जा सकता है।