कांग्रेस लोकतंत्र की स्थापना करने वाली पार्टी, हमें इस धरोहर पर गर्व: केवल सिंह पठानिया

उज्जवल हिमाचल। शाहपुर

शाहपुर ब्लॉक् कांग्रेस ने आज चंगर क्षेत्र की मनेई पंचायत में आज 137वां कांग्रेस का स्थापना दिवस स्थानीय कांग्रेस नेता केवल सिंह पठानिया सहित जनता ने बड़ी धूमधाम से मनाया । पठानिया ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 28 दिसंबर, 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। इसके संस्थापकों में ए.ओ. ह्यूम, दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। देश की आजादी की लड़ाई में कांग्रेस ने अहम भूमिका निभाई थी। बाद में यह देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। कांग्रेस पार्टी मंगलवार को अपना 137वां स्थापना दिवस मना रही है। पार्टी कार्यकर्ता इस दिन को संकल्प दिवस के रूप में सेटिब्रेट कर रहे है। उन्होंने कांग्रेस को लोकतंत्र की स्थापना करने वाली पार्टी बताया है और इस धरोहर पर उन्हें गर्व है।

पठानिया ने कहा कि, ‘हम कांग्रेस हैं- वो पार्टी जिसने हमारे देश में लोकतंत्र की स्थापना की और हमें इस धरोहर पर गर्व है। 136 साल की निस्वार्थता। हमारे लोगों की प्रगति के लिए 136 साल की प्रतिबद्धता/ अपने लोगों को प्राथमिकता देने का संकल्प लेने के लिए युगों से लेकर आज तक हर कांग्रेसी को हमारा सलाम, कांग्रेस की स्थापना साल 1885 में 28 दिसंबर को की गई थी/ दरअसल, मुंबई के गोकपलदास संस्कृत कॉलेज मैदान में इसकी नींव रखी गई थी, जहां देश के तमाम प्रांतों के राजनीति और सामाजिक विचारधारा के लोग एक साथ जुटे थे/ इसके बाद यह एकता राजनीतिक संगठन के रूप में बदली और कांग्रेस का गठन किया गया. कांग्रेस का पहला अध्यक्ष डब्ल्यू.सी.बनर्जी को बनाया गया।कांग्रेस पार्टी की स्थापना जब से हुई है तब से कांग्रेस पार्टी का उदेश्य जनता के हितों की रक्षा करने वाले भारतीयों के बीच मित्रता और संपर्क बढ़ाना जातिगत, धर्मगत तथा प्रतीय विभेदों को मिटाकर राष्ट्रीय एकता की भावना को विकसित करना।राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों पर शिक्षित वर्ग को एकजुट करना। भविष्य के राजनीतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा सुनिश्चित करना।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन में के नए युग का आरंभ हो गया। कांग्रेस का शुरुवाती नेतृत्व उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं ने किया। अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने कांग्रेस के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को स्पष्ट कर दिया। साथ ही, उदारवादी नीतियों को कांग्रेस का आदर्श घोषित किया गया। कांग्रेस के आरंभिक 20 वर्षों के काल को उदारवादी राष्ट्रीयता की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस की नीतियां अत्यंत उदार थीं। इस समय कांग्रेस पर समृद्धशाली माध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का प्रभाव था जिनमें वकील, डाॅक्टर, इंजीनियर एवं पत्रकार इत्यादि प्रमुख थे।

ये उदारवादी नेता अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान थे तथा उन्हें अपना शत्रु नहीं मानते थे। दादा भाई नौरोजी के इन शब्दों में आंग्रेजों के प्रति उनकी भावनाओं की मूर्त अभिव्यक्ति का पता चलता है- ’’ हम ब्रिटिश प्रजा है, हम अपने हक की मांग कर सकते हैं। अगर हमें ब्रिटेन की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं से वंचित रखा जाता है तो फिर भारत को अंग्रेजों के सवमित्व में रहने से क्या लाभ? यह तो एक और एशियाई निरंकुश शासन मात्र होगा’’ उदारवादी नेताओं में फिरोजशाह मेहता, बहरूदीन तैय्यब जी, व्योमेश चन्द्र बनर्जी लालमोहन घोष सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आनंद मोहन बोस और रमेशचंन्द्र दत्त प्रमुख थे। कालांतर में द्वारकानाथ गांगुली, एम, जी, राणाडे, वीर राघवचारी, आनंद चारलू और गोखले भी सम्मिलित हो गए।

कांग्रेस का अधिवेशन वर्ष में केवल तीन दिन चलता था। वार्षिक अधिवेशनों के अतिरिक्त अपने कार्यक्रम को जारी रखने के लिए कांग्रेस के पास किसी भी संगठित तंत्र का आभाव था।कांग्रेसी नेताओं को आंरभ में दृढ़ विश्वास था कि भारतीयों के सारे के पीछे नौकरशाही का भेदभावपूर्ण व्यवहार ही जिम्मेदार है। उदारवादियों ने साम्राज्यवाद की अथशास्त्रीय आलोचना करते हुए शोषण के विभिन्न रूपों, यथा-व्यापार, उद्योग तथा वित्त की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।