हिमाचल: स्वर्गीय वीरभद्र को भी मिला था सिंहासन पर बैठने का मौका

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

शांघड़ के ऐतिहासिक मैदान के एक छोर पर अभी यह सिंहासन यथावत है।इस पर बुशैहर के राजा के अलावा किसी को बैठने की अनुमति नहीं है।इस जगह को स्थानीय भाषा में राय-री-थल कहा जाता है।विक्रमादित्य सिंह बुशहर के 123वें राजा हैं। इस आसन पर बैठने का अधिकार उनका है। कहा जाता है कि शांघड़ का ऐतिहासिक मैदान कभी वीरभद्र सिंह के पूर्वजों की निजी संपत्ति हुआ करता था। बाद में लगभग 550 बीघा का मैदान उन्होंने देवता के नाम कर दिया।

कुल्लू जिले की सैंज घाटी के शांघड़ में भी बुशहर के राजा का प्राचीन सिंहासन है।इस पर अब तक 122 राजाओं में से मात्र दो ही राजा विराजमान हुए हैं।सैकड़ों साल पहले सिंहासन पर बैठे राजा भादर सिंह के बाद 9 दिसंबर 2016 को राजा बुशहर और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को इस अति पवित्र माने जाने वाले सिंहासन पर बैठने का मौका मिला था। अब विक्रमादित्य के राजतिलक के बाद स्थानीय लोगों को बुशहर राजघराने से पुराने रिश्ते बरकरार रखने की उम्मीद है।

मैदान करीब दो सौ बीघा में फैला है।दवेंद्र शर्मा, रूपेंद्र राणा, रेवती पालसरा, टेक सिंह ने कहा कि पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के पूर्वजों का शांघड़ क्षेत्र से गहरा नाता रहा है।अधिष्ठता देव शंगचूल महादेव का इतिहास भी रामपुर और सांगला क्षेत्र से जुड़ा है।पुजारी देवेंद्र शर्मा, कारदार सुधा शर्मा, गिरधारी लाल शर्मा और जगदीश शर्मा ने बताया कि देव समाज की बुशहर के राज परिवार के प्रति गहरी आस्था है।शांघड़ के ऐतिहासिक मैदान के एक छोर पर अभी यह बुशहर के राजा का प्राचीन सिंहासन यथावत है। इस पर बुशहर के राजा के अलावा किसी को बैठने की अनुमति नहीं है। इस जगह को स्थानीय भाषा में राय-री-थल कहा जाता है।