निजी स्कूलों को पूरी फीस वसूलने की अनुमति शर्मनाक फैसला: मंच

उज्जवल हिमाचल। शिमला

छात्र अभिभावक मंच हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश सरकार द्वारा निजी स्कूलों व संस्थानों को पूरी फीस लेने के लिए अधिकृत करने के निर्णय को बेहद शर्मनाक करार दिया है। मंच ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस निर्णय को तुरंत वापस लिया जाए व निजी स्कूलों द्वारा छात्रों व अभिभावकों की पूर्ण फीस वसूली में की जा रही मानसिक प्रताडऩा पर रोक लगाई जाए। मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा, सह संयोजक बिंदु जोशी, सदस्य विवेक कश्यप व फालमा चौहान ने निजी स्कूलों की पूर्ण फीस वसूली पर कैबिनेट के निर्णय को बेहद चौंकाने वाला छात्र व अभिभावक विरोधी निर्णय बताया है।

  • सरकार से निर्णय को वापस लेने की मांग, अभिभावकों ने लगाए मानसिक प्रताडऩा के आरोप

  • मैसेज भेजकर छात्रों को बाहर निकालने की भी धमकियां

इस निर्णय के आने के बाद निजी स्कूलों ने छात्रों व अभिभावकों को मानसिक तौर पर प्रताडि़त करना शुरू कर दिया है। निजी स्कूलों व संस्थानों ने दोबारा से छात्रों व अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के लिए मोबाइल मैसेज भेजना शुरू कर दिए हैं। इन मैसेज में उन्हें डराया धमकाया जा रहा है कि अगर पूर्ण फीस जमा न की गई तो छात्रों को न केवल संस्थानों से बाहर कर दिया जाएगा अपितु उन्हें परीक्षाओं में भी नहीं बैठने दिया जाएगा। ऐसे अनेकों उदाहरण प्रदेश में देखने को मिल रहे हैं।

विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि शिमला जैसे विंटर स्कूलों में फाइनल एग्जाम की डेटशीट व पाठयक्रम भी जारी हो चुका है। एक भी दिन स्कूल नहीं लगे हैं। स्कूल का छात्रों पर कोई भी खर्चा नहीं हुआ है। उनके बिजली, पानी के बिल भी नाम मात्र हैं। उन्होंने कहा है कि नियमित स्कूल न चलने के कारण निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों ने आधे अध्यापकों, कर्मचारियों, ड्राइवरों, सुरक्षा स्टाफ व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल कर कोरोना काल में भी चांदी कूटी है।

इन स्कूलों ने कुल फीस व चार्जेज के अस्सी प्रतिशत हिस्से को टयूशन फीस में परिवर्तित करके अभिभावकों से ज़्यादातर फीस भी वसूल ली है। इसके विपरीत बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज के लिए नए मोबाइल व डेटा इस्तेमाल करने पर अभिभावकों पर हज़ारों रुपये का अतिरिक्त खर्चा बढ़ गया है। इस तरह अभिभावकों व छात्रों की भारी लूट की जा रही है।

उन्होंने हैरानी जताई कि प्रदेश सरकार की कैबिनेट हिमाचल उच्च न्यायालय के एक निर्णय को आधार बनाकर निजी स्कूलों को खुली लूट की इजाज़त दे रही है जबकि इसी सरकार ने 27 अप्रैल 2016 को उच्च न्यायालय द्वारा निजी स्कूलों द्वारा वसूली जाने वाली टयूशन फीस के अलावा एडमिशन फीस, बिल्डिंग फंड,एनुअल चार्जेज़ व अन्य विविध फंडों पर लगाई गयी रोक के निर्णय को लागू करने में पिछले चार वर्षों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसी से स्पष्ट है कि जब न्यायालय का निर्णय निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों के पक्ष में आता है तो सरकार निर्णय को रातोंरात लागू कर देती है जबकि निर्णय इन निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों के खिलाफ आता है तो सरकार चार वर्षों तक उस निर्णय को लागू नहीं करती है। उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि यह दोहरा रवैया किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को तुरंत वापस लिया जाए।