उज्जवल हिमाचल। नई दिल्ली
पाकिस्तान का करतारपुर गलियारा एक बार फिर सुर्खियों में है। खासकर भारत-पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या धार्मिक लिहाज से खोले जा रहे करतारपुर गलियारों से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल सकती है। इसके खोले जाने से भारत और पाक के रिश्तों पर क्या असर होगा ? आखिर पाकिस्तान में इसकी दिलचस्पी क्यों है ? क्या है इसके बड़े निहितार्थ? प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि भारत-पाक संबंधों की गुत्थी जटिल है। दोनों देशों की कूटनीतिक रिश्तों की डोर बहुत कमजोर है। ऐसे में करतारपुर गलियारे के खुल जाने से दोनों देशों के बीच संबंधों में एक सकारात्मक असर पड़ेगा।
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इससे दोनों देशों के नागरिकों के मध्य संपर्क को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह गलियारा भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक कड़ी साबित हो सकता है। इससे दोनों देशों के बीच पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसकी वजह यह है कि दोनों देशों के ज्यादा से ज्यादा तीर्थयात्री पूरे वर्ष पवित्र तीर्थ यात्रा करेंगे। प्रो. पंत ने कहा कि जम्मू कश्मीर, आतंकवाद, अनुच्छेद 370 को लेकर दोनों देशों के बीच काफी तनाव है। इसके बावजूद करतारपुर गलियारे को लेकर दोनों देशों के नियमित बैठक जारी रहीं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद से जूझ रहे पाकिस्तान की आर्थिक हालत काफी तंग हो चुकी है।
भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान एक एक इस्लामिक राष्ट्र है। इस्लाम के अधिकांश पवित्र धार्मिक स्थल सउदी अरब, ईरान और इराक में हैं। ऐसी स्थिति में यदि पाकिस्तान अपने यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना चाहता है तो उसे अपने देश में मौजूद सिख धार्मिक स्थलों के विकास पर जोर देना होगा। कई वर्षों से भारत और पाकिस्तान के आर्थिक संबंध काफी खराब चल रहे हैं। करतारपुर गलियारे से दोनों देशों के व्यापारियों को उम्मीद है। पाकिस्तान में आतंकवाद की सक्रियता को देखते हुए भारत से जाने वाले सिख यात्रियों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में इन श्रद्धालुओं की सुरक्षा पाक के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। भारत को यह भी भय सता रहा होगा कि पाकिस्तान खालिस्तान सहानुभूति के लिए गुरुद्वारों का प्रयोग कर सकता है।
गौरतलब है कि भारतीय सिख तीर्थयात्रियों के लिए करतारपुर साहिब की ओर जाने वाले गलियारे को खोलने की मांग भारत द्वारा कई अवसरों पर उठाई जाती रही है। वर्ष 1999 में लाहौर की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की थी। वर्ष 2000 में पाकिस्तान में सैन्य हुकूमत के दौरान तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारा में सिख भक्तों की यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए एक गलियारे के निर्माण को मंजूरी दी थी। बाद में यह अध्याय यही बंद हो गया।
अगस्त 2018 में जब इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुना गया तो उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया और वहां से करतारपुर गलियारे का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया। नवंबर 2018 में पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2019 में श्री गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती मनाने का प्रस्ताव पारित किया। इसके साथ ही गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर गलियारे के निर्माण और विकास को मंजूरी दी।
भारत ने पाकिस्तान से भी आग्रह किया वह भारतीय सिख समुदाय की धार्मिक भावना का आदर करते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा से करतारपुर साहिब तक गलियारे का निर्माण करें। पाकिस्तान ने भारत की मांग को स्वीकार किया। पाकिस्तान ने कहा कि वह भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए गलियारा खोलने को राजी है। 26 नवंबर, 2018 को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भारतीय क्षेत्र में प्रस्तावित गलियारे की आधारशिला रखी।