IIT मंडी की बड़ी खोज, अब लाइलाज नहीं होगा अल्जाइमर!

भूलने के लाइलाज अल्जाइमर रोग को समझना वैज्ञानिकों के लिए अब आसान होगा और दवा अनुसंधान में भी मदद मिलेगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण जैव, आणविक प्रक्रिया का पता लगाया है, जो अल्जाइमर रोग में अकसर दिखने वाले प्रोटीन बनाने में जिम्मेदार होती है।

स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रजनीश गिरी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम शोध विद्वान डॉ. कुंडलिक गढ़वे, तानिया भारद्वाज के साथ कैंब्रिज विश्वविद्यालय इंग्लैंड के प्रो. मिशेल वेंड्रस्कोलो और दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय अमेरिका के प्रो. व्लादिमीर विस्की की टीम ने यह सफलता पाई है। शोध टीम के निष्कर्ष हाल में सेल रिपोर्ट्स फिजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।

अल्जाइमर रोग दुनियाभर में तेजी से बढ़ते न्यूरोलॉजिकल विकारों में से एक है। इसे डेमेंशिया का सबसे सामान्य प्रकार भी माना जाता है। आंकड़ों के मुताबिक अकेले अमेरिका में हर साल इस रोग के 5 मिलियन (50 लाख) मामले सामने आते हैं।

विशेषज्ञों को आशंका है कि साल 2060 तक इसके सालाना मामलों में लगभग तीन गुना तक वृद्धि हो सकती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए अल्जाइमर रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 21 सितंबर को वर्ल्ड अल्जाइमर डे मनाया जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस रोग के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाकर उन्हें सुरक्षित रहने में मदद की जा सकती है।

यह हैं लक्षण….

  • सुरक्षा और जोखिमों की समझ न होना
  • समस्याओं में निर्णय लेने में कठिनाई महसूस होना
  • अवसाद, उदासीनता और समाज से दूरी बना लेना
  • चिड़चिड़ापन और सोने की आदतों में बदलाव
  • पहले की तुलना में अधिक बार बात-बात पर परेशान या क्रोधित होना
  • उन गतिविधियों में रुचि न लेना जो आमतौर पर आनंद देती हैं