इतिहास में पहली बार जनजातीय इलाके के लोगों को रोहतांग दर्रे खुलने का नही करना पडा इंतजार

प्रेम डोगरा । लाहौल-स्पीति

लाहौल घाटी के लोगों का प्रवेश द्वार रोहतांग दर्रा लाहौल घाटी के लोगों के लिए सदियों से चुनौती का कारण बनता रहा है। करीब 13050 फीट की उॅचाई वाले इस दर्रे के सडक मार्ग ही घाटी के लोगों की जीवन रेखा मानी जाती है। जब यह दर्रा वाहनों की आवाजाही के लिए खुलता तो घाटी में सामाजिक, आर्थिक, विकासात्मक, धार्मिक जैसे गतिविधियों का आगाज होता और जैसे ही यह दर्रा भारी हिमपात के चलते बंद हो जाता तो आदिवासी इलाके की सारी गतिविधियां ठप्प हो जाती। यॅू कहें तो अतिशोक्ती नही होगी कि घाटी के लोगों का जीवन पंगू बन कर रह जाता। और लोग एक बार फिर रोहतांग दर्रे के खुलने का बेसब्री से इन्तजार करने लग पडते। आखिर हो भी क्यो ना।

रोहतांग दर्रा सडक मार्ग ही एकमात्र जारिया था जो देश दुिनया से जोडने का काम कर रहा था। साठ के दशक से पहले जब नेशनल हाईवे नम्बर 3 नही बना था तब लोग गर्मी हो या सर्दी मनाली से ही पैदल रोहतांग दर्रे को पार करते थे जैसे ही सडक मार्ग का निर्माण हुआ तो लोग सडक मार्ग के बहाली का इन्तजार करने लग पडे हालांकि स्थानीय लोगों को अपने जरूरी कार्य निपटाने के लिए रोहतांग दर्रे को पैदल पार करना एक आम बात थी। जिसके लिए घर के बडे बुर्जग बच्चों को बचपन से ही अपने अनुभवों से अवगत कराते और रोहतांग दर्रे को पार करने के गुर सिखाते थे।


लाहौल घाटी के इतिहास में पहली बार लोगों के जुबान पर रोहतांग दर्रा सडक मार्ग खुलने या बन्द होने की बात नही आई है। आमतौर पर मार्च महीना होते ही लोग रोहतांग दर्रे के सडक मार्ग के बारें में पूछताछ आरम्भ कर देते और सीमा सडक संगठन के जवान व अधिकारियों से भी दर्रे के खुलने को ले कर लगातार सर्म्पक में रहते। जिससे सीमा सडक संगठन के अधिकारियों व जवानों पर भी रोहतांग दर्रा सडक मार्ग खोलने का भारी दबाब रहता था।


बहारहाल यह सब बातें इतिहास के पन्ने में सिमट कर रह गई है जिसका सारा श्रेय अटल टनल रोहतांग को जाता है जिसके बदौलत आज लाहौल घाटी के लोगों को 13058 फीट की उॅचाई वाले दर्रे को पैदल पार नही करना पड रहा है और ना ही रोहतांग दर्रे के खुलने व बन्द होने की चिन्ता सताती हैै। अटल टनल रोहतांग वाकई में घाटी के लोगों के लिए वरदान साबित हुई है ।