मंडी उपचुनाव: मात्र पांच फीसदी मतों पर सिमट जाते हैं निर्दलीय

उज्जवल हिमाचल। मंडी

हिमाचल प्रदेश में उपचुनावों का दौर चल रहा हैं। प्रदेश में एक संसदीय तथा तीन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने जा रहे है। इन उपचुनावों में संसदीय क्षेत्र मंडी पर सबकी नजर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से मंडी भारत का दूसरा सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है। इसका क्षेत्र 17 विधानसभा क्षेत्रों से लगता है। मंडी में भाजपा और कांग्रेस को छोड़ अन्य सभी राजनीतिक दल व निर्दलीय प्रत्याशी मात्र पांच फीसदी मतों पर ही सिमट जाते है।

वर्ष 1951 में लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी काहन सिंह को 10.89, 1957 में आनंद चंद को सर्वाधिक 36.53 फीसद व 1967 में डीएस राणा को 22.18 फीसदी मत मिले थे। इन तीन चुनावों के बाद यहां निर्दलीय व अन्य दलों का खेल पांच फीसद तक सिमट कर रह गया है। माकपा ने भी कई चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन तीसरा विकल्प पेश नहीं कर सकी।

पिछले तीन चुनावों में माकपा को यहां 1.58 से 2.89 फीसद मतों से संतोष करना पड़ा। वर्ष 2009 में हुए चुनावों में डा. ओंकार शाद को 2.89, 2014 में कुशाल भारद्वाज को 1.92 व 2019 के लोकसभा चुनाव में दलीप सिंह कैथ को 1.58 फीसद मतों से ही संतोष करना पड़ा था। समाजवादी पार्टी, बसपा, जनता दल व आम आदमी पार्टी ने भी यहां पर अपने उम्मीदवार उतारे पर सभी प्रत्याशी मात्र एक से डेढ़ फीसद वोट ही ले पाए।