पठानकोट-मंडी फोरलेन परियोजना में 3 दर्जन के लगभग गांव इस परियोजना की चढ़ रहे भेंट

विनय महाजन। नूरपुर

पठानकोट-मंडी फोरलेन परियोजना में 90 प्रतिशत भाग नूरपुर क्षेत्र व 10 प्रतिशत भाग ज्वाली क्षेत्र का आ रहा है। कंडवाल से सियूनी तक के 3 दर्जन के लगभग कस्बे इस परियोजना की भेंट चढ़ रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मार नुरपुर उपमंडल में कंडवाल, नागावाड़ी सके अलावा जसूर से बोड़ तक के बाजारों पर पड़ रही है, जहां भारी संख्या में कारोबारी परिसर, होटल, दोपहिया, चौपहिया वाहनों के बड़े-बड़े शोरूम इस परियोजना  की भेंट चढ़ जाएंगे तथा हिमाचल सरकार के राजस्व को करोड़ों रुपए का नुकसान प्रवाभित व्यापारियों के इधर-उधर जाने से होगा।

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एनएच के इस फोरलेन सड़क के समानांतर 100 से 150 मीटर की दूरी पर नई सड़क एक बेहतरीन समाधान होता, जिस पर कथित सर्वे में गौर ही नहीं किया गया। सैकड़ों भवन, व्यवसायिक परिसर व 2000 के करीब विशाल हरे व सूखे वृक्षों की बलि चढ़ने से बच सकती थी, जहां कंडवाल से बोड़ तक की खड्ड का तटीयकरण हो जाता। वहीं, अवैध खनन की समस्या पर भी अंकुश लग सकता था। इस सर्वे पर करोड़ों रुपए की अदायगी की गई, लेकिन यह सर्वे क्षेत्र के लोगों के लिए बर्बादी वाला ही साबित हुआ। हालांकि फोरलेन संघर्ष समिति द्वारा संबंधित विभाग व तत्कालीन सांसद व प्रदेश सरकार को 3 वर्ष पूर्व इस विकल्प पर ध्यान देने कहा गया था, लेकिन उस पर कोई गौर नहीं किया गया।

जसूर में बनने वाले फ्लाईओवर का 90 करोड़ का अनुमानित व्यय विभाग बचा सकता था। वहीं, इस राशि से सिक्स लेन तक बोड़ तक सड़क आराम से बनती तथा 300 करोड़ का मुआवजा 50 करोड़ तक सिमट सकता था, लेकिन जनता के चुने जनप्रतिनिधि व पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित पदाधिकारियों ने भी इस विषय में कोई गौर नहीं किया न ही इस प्रकरण में कोई प्रस्ताव सरकार को जनहित में नहीं भेजा तथा संबंधित विभाग पर कोई दबाव नहीं बना सके। फोरलेन पर मुआवजा 2013 की बजाय 1956 के एक्ट पर दिया गया।

1956  के सर्किल रेट के तहत उस सर्किल के पूरे मुहाल की जमीन की कीमत के औसत को निकाल कर तय किया जाता है, लेकिन यह कसौटी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित वाली जमीनों पर लागू नहीं होती। 5 से 15 लाख प्रति मरना के प्रचलित दामों की जगह 8000 से 20000 तक प्रति मरला रेट पर फोरलेन प्रभावितों को थमाये गए। वहीं, भवनों के अधिग्रहण को भी 10 से 20000 प्रति अधिग्रहण को भी 10 से 20000 प्रति स्क्वायर मीटर को देने की तैयारी की जा रही है, जो कि वर्तमान निर्माण परिसर के मुकाबले काफी कम है। उल्लेखनीय है कि नम्बर के अंतिम सप्ताह में हिमाचल प्रदेश सरकार के तीन मंत्रियों की एक बैठक फिर से शिमला में संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ होने जा रही।