पंजाब चुनाव, खामोशी से उभरा हिन्दू वोट बैंक बिगड़ सकता है चुनावों के समीकरण

विनय महाजन। पठानकोट  
पंजाब में खामोशी से उभरा हिन्दू वोट बैंक की जिस तरफ झुकाब होगा उस पार्टी को सरकार बनाने में आसानी हो सकती हैं। पर मुद्दा यह भी हैं कि किसी भी पार्टी की सरकार ने इस वोट की तरफ ध्यान नहीं दिया है। आतंकवाद से पीड़ित हिन्दूओं से वोट मागंने के लिए सभी पार्टीयों के नेता कतरा रहे है। पंजाब में तेज़ी से हो रहे धर्मांतरणन के कोई वास्तविक आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं पर जिसप्रकार सीमावर्ती क्षेत्रों में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के धार्मिक स्थल चर्च व उनमें जुड़ने वाली भीड़ दिखाई देती है, वह चौंकाने वाला है। पाकिस्तान की सीमा से लगते पंजाब के अनेक गांव हैं जहां इसाई अबादी 30 प्रतिशत के करीब है। इनमें गांव दुजोवाल, अवान आदि कुछ प्रमुख नाम है।
राज्य में ईसाई मतदाताओं की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन राज्य की राजनीति में समुदाय का प्रतिनिधित्व नगण्य है ।माझा और मालवा क्षेत्रों में तो पिछड़े वर्ग के लोग बड़ी संख्या में ईसाई धर्म में परिवर्तित हो रहे हैं। मनदीप कौर या कुलदीप सिंह नाम के किसी व्यक्ति से गले में माला लेकर मिलना आसान है। उत्पीड़न के डर से उन्होंने धर्म परिवर्तन के बाद अपना नाम बदलना बंद कर दिया है। गुरदासपुर में ईसाई एक महत्वपूर्ण वोट बैंक बनाते हैं क्योंकि राज्य में सबसे अधिक अल्पसंख्यक आबादी वाला अधिकार क्षेत्र। इसके बाद जालंधऱ व लुधियाना में भी इनके मतदाताओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
पंजाब की सत्तारुढ़ कांग्रेस ने मतदाताओं के इस वर्ग को देखते हे कुछ वर्ष पहले न केवल इसाई आयोग बनाया अपितु कुछ प्रमुख चेहरों को औधों पर भी बिठाया। बदलते राजनीतिक परिवेश में आज पंजाब की में राजनीति में दलितों का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। लगभग 32 प्रतिशत अनुसूचित जाति आबादी वाले राज्य को इस बार  अपना पहला दलित मुख्यमंत्री मिला। भारतीय जनता पार्टी भाजपा ने सत्ता में आने पर एक दलित मुख्यमंत्री का वादा किया है, शिरोमणि अकाली दल शिअद ने एक दलित नेता के लिए उप मुख्यमंत्री का पद आरक्षित किया है। आप में भी एक दलित चेहरा, नेता प्रतिपक्ष हरपाल सिंह चीमा, की भुमिका भी अहम है, हालांकि वह मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हैं।