जज्बे को सलाम, बेरोजगारों के लिए प्रेरणा बना 85 वर्षीय बाली राम, पेश की मेहनत ईमानदारी और विश्वास की मिशाल

जज्बे को सलाम
jawali old man

चैन सिंह गुलेरिया। जवाली

केंद्र और प्रदेश की सरकार द्वारा कई विकासशील योजनाएं चलाई जा रही है। कई जगह पर तो इन योजनाओं को परिणाम अच्छा दिखा है। जिससे ग्रामीण इलाकों को विकास हुआ हैं पर कई जगहों पर तो इसका परिणाम विपरित दिखा है। लोग इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए मारे-मारे घूम रहे है। मेहनत को छोड़कर हराम की खाने की सोच रहे है। यहां तक नेता लोग भी भ्रष्टाचार के कीचड़ में घुसते जा रहे है। लेकिन आज उज्जवल हिमाचल ने एक ऐसे गरीब शख्स से वार्तालाप किया जोकि देश व प्रदेश के लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। बता दें कि यह बुजुर्ग कोई साधारण व्यक्ति की श्रेणी में नहीं आता है।

इस महान हस्ती का नाम बाली राम सपुत्र स्वर्गीय दूलो राम गांव व डाकखाना सिद्धपुरघाड तहसील जवाली जिला कांगड़ा का निवासी है और एक पुराने स्लेटपोश मकान में गुजर बसर कर रहा है।यह बुजुर्ग लगभग 85 वर्ष की आयु से गुजर रहे है और पूरी लगन से लोगों के मकानों को बनाने के लिए दिहाड़ी लगाते है और घर पर खेती संबंधी औजार बनाने लोहार का काम भी करते है। इस बुजुर्ग की खास बात यह भी है कि इस शख्स ने आज दिन तक न तो बुढ़ापा पेंशन ली है और न ही किसान सम्मान निधि का पैसा लिया है। जबकि करोड़ों रुपया कमाने वाले नेताओं ने अपनी पेंशन व अपने भत्ते तक नहीं छोड़े। इस बुजुर्ग की एक और खासियत है कि अगर किसी के घर कोई मातम हो जाए तो यह महानुभाव अपनी दिहाड़ी को छोड़कर उस पार्थिक शरीर की अर्थी को बनाने में बिना किसी शुल्क से अपना योगदान देते है।

जोकि काबिले तारीफ है और प्रदेश के नागरिकों व नेताओं के लिए प्रेरणा की मिशाल है। लेकिन इस शख्स की राह पर चलना आम आदमी व किसी नेता के वंश की बात नहीं है। इतना ही नहीं गुप्त सूत्रों के हवाले से पता चला है कि इसके बेटे राकेश कुमार धीमान ने सरकार द्वारा दी जाने वाली किसान सम्मान निधि को लेने के लिए फॉर्म भरकर अपने पिता को साइन करने को कहा। बुजुर्ग ने पूछा की किस बात के लिए साइन करवा रहे हो तो उसने बताया की सरकार किसानों को पैसे दे रही है। तो इस शख्स ने खाना पीना छोड़ दिया। फार्मों को फाड़ा तो खाना खाना शुरू किया।

इसका मतलब यह था कि यह महानुभाव मेहनत व अपने दस नाखूनों की किरत पर विश्वास रखता है और इस बुजुर्ग के खून की बूंद-बूंद में ईमानदारी भरी पड़ी है। इससे बड़ा त्यागी भला कौन हो सकता है। इस महानुभाव का कहना है कि सरकार लोगो को निकम्मा न बनाए और फ्री के खाने को आदत न डाले । बुढ़ापा पेंशन और किसान सम्मान निधि के रूप में दिए जाने वाले पैसे को विकास कार्यों व बेरोजगारों को रोजगार दिलाने पर खर्च करे । अगर हो सके तो सरकार विधायकों व मंत्रियों को जो सस्ते व्याज पर ऋण देती है उसे बेरोजगारों को रोजगार बढ़ाने के लिए दे तो प्रदेश को आगे बढ़ने में रामबाण साबित होगी।