नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सतही तौर पर क़ुछ खामियां : भंडारी

उज्जवल हिमाचल। कांगड़ा

मौजूदा 10+2+3 की जगह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सतही तौर पर क़ुछ खामियां नजर आ रही हैं, जिनकी वजह से भ्रम व संशय की स्थिति बन सकती है। हिमाचल प्रदेश लेक्चरार संघ के पूर्व राज्य प्रधान व रिटायर्ड प्रिंसिपल कल्याण भंडारी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर एक तरफ केंद्र सरकार की कस्तूरीरंगन आयोग द्वारा निर्मित नई शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण मद्दों की तारीफ कर इसका स्वागत किया है। वहीं, पर क़ुछ विशेष पहलुओं पर संशय व्यक्त किया है।

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भंडारी ने कहा कि आज़ाद भारत के इतिहास में 1968, 1986 के बाद 2020 में यह तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति है, जिसमें 5+3+3+4 के फॉर्मेट के तहत चार चरणों में पहले पांच वर्ष 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए फाउंडेशन स्तर, अगला पड़ाव कक्षा 3 से 5 तक 8 से 11 वर्ष के बच्चों के लिए प्रिपरेटरी स्तर, तीसरा चरण कक्षा 6 से 8 तक 11 से 14 साल के लिए मध्यम स्टेज कहा गया है। चौथा तथा अंतिम चरण कक्षा 9 से 12 तक 14 से 18 वर्ष के लिए हैं, जिसे सेकंडरी स्टेज कहा गया है। नई शिक्षा नीति में सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशी शिक्षा पर व्यय करना व कक्षा छठी से वोकेशनल शिक्षा की बात कही गई है, जो कि स्वागत योग्य कदम है।

इसके अलावा मिड-डे मील कार्यक्रम के विस्तार करने व शिक्षा का अधिकार कक्षा 12 तक करना महत्वपूर्ण है। कल्याण भंडारी ने आगे कहा कि बच्चों को उनकी मातृ भाषा में शिक्षा प्रदान करने से संबंधित संशय व भ्रम की स्थिति उभर रही है। यह बात स्पस्ट नहीं है कि अंग्रेजी भाषा के अध्ययन के विषय पर शिक्षा नीति के मसौदे में जिक्र है या नहीं।

मातृ भाषा को शिक्षा का माध्यम अगर एक समान और एकरूपता के साथ सभी सरकारी व निजी स्कूलों में लागू नहीं किया, तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को भेजने की अभिभावकों की दिलचस्पी खत्म हो जाएगी, जिसके फलस्वरूप शिक्षा क्षेत्र में कारपोरेट कारोबार बढ़ेगा। क्योंकि अंग्रेजी की अहमियत और स्वीकार्यता के प्रति हर माता-पिता का झुकाव बना हुआ है। मातृ भाषा का हर क्षेत्र में अलग-अलग स्वरूप भी भ्रम, संशय व असमंज की स्थिति उत्पन्न कर प्रश्न पैदा करता है।

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