अब शहरी क्षेत्राें में बढ़ सकती हैं आतंकी गतिविधियां

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के लोगों के पहाड़ों से नीचे उतरते ही शहरी क्षेत्राें में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ सकती हैं, क्योंकि पहाड़ों पर गुज्जर-बक्करवालों को धमका कर आतंकी अपना गुजारा करते हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण काल के दौरान गत महीनों सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव के कारण कुछ आतंकवादी दक्षिण कश्मीर के क्षेत्र को छोड़कर जम्मू संभाग के किश्तवाड़ जिला के पहाड़ी क्षेत्राें में आकर भूमिगत हो गए थे। सूत्रों के मुताबिक मई तक इन आतंकियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन जैसे ही गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के लोग अपने मवेशी लेकर पहाड़ों पर पहुंचे, तो वहां पर छिपे आतंकी उनमें खुद को जीने की जुगाड़ खोजने लगे।

ये आतंकी गुज्जर-बक्करवालों को डरा-धमकाकर खाना आदि खा लेते थे। मौसम बदलने के साथ अब इस समुदाय के लोग अपने मवेशियों को लेकर नीचे शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं। पहाड़ों पर कुछ दिनों बाद बर्फबारी शुरू हो जाएगी। अगर माड़वा और वाड़वन के पहाड़ों पर अगर आतंकी छिपे बैठे हैं, तो उन्हें नीचे की ओर भागना पड़ेगा। इन हालात में यह आतंकी किश्तवाड़ शहर या इसके आसपास के क्षेत्राें में सक्रिय हो सकते हैं। क्योंकि पिछले काफी समय से अमीन भट्ट उर्फ जहांगीर सरूरी और उसके तीन साथियों का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है।

पिछले वर्ष भाजपा नेता अनिल परिहार, उनके बड़े भाई अजीत परिहार, आरएसएस नेता चंद्रकांत शर्मा और उनके अंगरक्षक राजेंद्र सिंह के कातिल आतंकवादी भी गुज्जर-बक्करवालों का सहारा लेकर बटोत तक पहुंच गए थे। वह श्रीनगर भागने की फिराक में थे, लेकिन 28 सितंबर को तीन आतंकी ओसामा बिन जावेद, जाहिद हुसैन, बिलाल उर्फ मोहिन उल इस्लाम को सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया। कश्मीर में जान हथेली पर लेकर आतंकवाद से लड़ रही सेना क्षेत्र में बुजुर्गों, महिलाओं व बच्चों की हिफाजत करने में भी पीछे नहीं है। आतंकोधी अभियानों के दौरान सुनिश्चित किया जाता है कि क्षेत्र के निवासियों को कोई परेशानी न आए।

इसलिए आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान मुठभेड़ स्थलों पर पूरी एहतियात बरती जाती है। अनंतनाग में 25 सितंबर को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सेना के जवानों ने जान की बाजी लगाकर बुजुर्गों की मदद की। ये लोग गोलीबारी के बीच मुठभेड़ स्थल पर फंस गए थे। इस मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकी मारे गए थे। आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने से पहले जवान आसपास के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का काम करते हैं। कई बार आतंकियों द्वारा अचानक गोलीबारी शुरू कर देने से स्थानीय लोग बीच में फंस जाते हैं। इस वर्ष जुलाई महीने में सोपोर में मुठभेड़ के दौरान सेना के जवानों ने मुठभेड़ स्थल से एक मासूम को बचाया था।

यह मासूम आतंकवादियों की गोली से मारे गए दादा के शव पर बैठकर रो रहा था। उसे बचाने के लिए सुरक्षा बल के जवान ने बहादुरी दिखाई। इस दौरान आतंकवादियों की ओर से फायरिंग चल रही थी। बच्चा भी रोए जा रहा था। बुलेट प्रूफ जैकेट पहने एक सैनिक ने इस बच्चों को दुलारते हुए उसे बिस्किट व चाकलेट भी दी थी। सेना कश्मीर में बुजुर्गों, महिलाओं व बच्चों की मदद के लिए लगातार कार्रवाई कर रही है। ऐसे में लोगों की मुश्किलों को दूर करने के लिए मेडिकल कैंप को आयोजन किया जाता है। इसके साथ बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए भी बंदोबस्त किया जा रहा है।