पंचायत के चुनावी दंगल में शिक्षकों संग दुर्व्यवहार से नाखुश अध्यापक संघ

अरुण पठानिया। रैहन

हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जिला कांगड़ा ने हाल ही में हुए पंचायत चुनावों को सफलतापूर्वक करवाने के लिए चुनाव आयोग को बधाई दी हैं । संघ ने कहा कि बिना अध्यापकों के कोई भी चुनावी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता है। अध्यापक इस कार्य को बहुत ही निष्पक्षपूर्वक और गंभीरता से अंजाम देते हैं। 30 घंटे लगातार कार्य करने के बाद  थोड़ी-बहुत कमी रह सकती है । इन कमियों को दूर करने के लिए चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है। अच्छा कार्य करने के बावजूद चुनाव आयोग द्वारा कुछ शिक्षक कर्मियों को अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत सेवा से सस्पेंड किया गया, जिस पर हिमाचल राजकीय अध्यपक संघ ने अपनी नाखुशी जाहिर की।

शिक्षक संघ जिला कांगड़ा का कहना है..

शिक्षक कर्मचारियों की सस्पेंशन को गैर कानूनी बताते हुए संघ के जिला अध्यक्ष नरेश कुमार, महासचिव संतोष पराशर ,वित्त सचिव रामस्वरूप, महिला विंग की अध्यक्षा रश्मि ठाकुर ,राज्य उपाध्यक्ष अरुण पठानिया, सुरेश नरियाल, प्रेस सचिव देवराज डडवाल व समस्त खंडों के प्रधान ने कहा कि शिक्षा विभाग के टीचिंग ओर नॉन टीचिंग कर्मचारी अपने विभाग का कार्य मेहनत से करते हुए चुनाव आयोग के कार्य को ईमानदारी से करते हैं। पंचायत स्तर के चुनावों में  शिक्षक रात रात भर जाग कर वेलेट पेपर पर लिखते रहे और कार्यों को अंजाम देते रहे।

सुबह 6 बजे से लेकर रात को एक या दो बजे जा कर चुनावी गणना करवा कर फ्री होते हैं। कई जगह छोटी मोटी अगर गलती हो जाती है तो चुनाव प्रभारी इसका सारा जिम्मा चुनावी टीम के सिर फोड़ देते हैं। अपनी विशेष शक्तियों का दुरप्रयोग अधिकारियों द्वारा जम कर किया जाता है व अधिकारियों द्वारा अध्यापकों को प्रताड़ित करने की भी कोशिश की जाती है। अतः शिक्षकों को कार्यवाही के नाम पर सस्पेंड करना गलत बात है।

चुनाव प्रक्रिया में सुधार की जरुरत

विभाग को उन कारणों का पता लगाना चाहिए जिन कारणों से कर्मचारी से गलती होना संभव है। उनमें सुधार की जरूरत है। अन्यथा कर्मचारी कार्यवाही के कारण इस ड्यूटी को करने से कतराते हैं। संघ ने आपात बैठक कर आयोग द्वारा इन कर्मचारियों पर की गई कार्यवाही की निंदा की है। चुनावी कर्मचारियों द्वारा उच्च अधिकारियों के द्वारा किये जा रही निरंकुशता की शिकायतें की गई थीं,परंतु इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।  चुनाव आयोग द्वारा संघों के सुझावों को भी गंभीरतापूर्वक नहीं लिया गया। अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में कोई भी शिक्षक चुनावों में हिस्सा नहीं लेगा।