उठापटक ने पटक दी कांग्रेसी योजना !

गफूर खान। धर्मशाला

राजनीति में कब क्या हो जाए इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है। यहां वह भी हो जाता है जो कभी सोचा न हो और वह नहीं भी होता है जिसे सब सोच रहे हों। प्रदेश में तो आजकल फिजा ही कुछ ऐसी चली है कि कब क्या हो जाए किसी को नहीं पता। कुछ समय से ऐसे दिव्य चमत्कार भाजपा में दिखाई दे रहे थे लेकिन अब इसी राह पर कांग्रेस भी चलती नजर आ रही है। राजनीति की लड़ाई पार्टियों की होती है लेकिन यहां पार्टियों की लड़ाई से ज्यादा अपने वजूद की लड़ाई दिख रही है। कम से कम कांग्रेस में तो यही हाल हैं। हुआ यूं कि कांग्रेस हाईकमान ने कहा कि कोरोना पर सरकार को घेरो पर कांग्रेसियों ने अपनी ताकत एक-दूसरे को ही घेरने में लगा दी। हाईकमान ने यह आदेश जारी किए थे कि हर जिले के कांग्रेसी अपने-अपने जिला मुख्यालयों पर पत्रकार वार्ता करके, सरकार को कटघरे में खड़ा करेंगे। यही आदेश जिला कांगड़ा में भी आए थे, पर यहां कहानी कुछ और ही बन गई। जिला मुख्यालय में होने वाली पार्टी की पत्रकार वार्ता खटाई में पड़ गई और जिला स्तरीय यह पत्रकार वार्ता उपमंडल स्तरीय बनकर रह गई।

अब कांग्रेस के पदाधिकारी तर्क यह दे रहे हैं कि मीडिया की सुविधा के लिए यह कार्यक्रम बदला गया है लेकिन मीडिया को यह बदली परिस्थितियों का नतीजा ज्यादा लग रहा है। ऐसा हो सकता है कि कुछ नेताओं को लगा हो कि जिला मुख्यालय पर सरकार को घेरा तो क्रेडिट जिला मुख्यालय के नेता के खाते में चला जाएगा और वर्चस्व की लड़ाई में एक नेता सबको अपने पीछे खड़ा कर लेगा। मुख्यालय के नेता के घर में जमी महफिल को यही नेता लूट ले जाएंगे इसी डर से सारा कार्यक्रम ही बदल गया। हवाला दिया गया कि इतने नेता एक साथ आते तो पत्रकारों को मुश्किल होती कि आखिर किस से क्या सवाल पूछेंगे। वैसे कायदे से होना था कि जिला स्तरीय पत्रकार वार्ता का प्रतिनिधित्व जिलाध्यक्ष करते लेकिन यहां तो माजरा कुछ और ही दिखा। इसी अनदेखे डर ने सबके पैर पीछे सरका दिए और कहा गया कि दो दिन पहले ही शैड्यूल बदला गया है और उपमंडल स्तर पर ही सरकार को घेरा जाएगा।

कांग्रेस के जिला के पदाधिकारी के यह तर्क भी कुछ हजम नहीं हो रहे क्योंकि जिला स्तर की बजाए यदि उपमंडल स्तर पर ही सरकार के खिलाफ आग उगलना तय किया है तो क्यों धर्मशाला में दो विधानसभा क्षेत्रों के नेताओं ने शिरकत की, वह भी आस-पड़ोस के नहीं बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों से विशेष रूप से पहुंचे। कांगड़ा, शाहपुर, नगरोटा या पालमपुर नहीं बल्कि धर्मशाला के पड़ोसी का फर्ज सुलह और जयसिंहपुर को निभाना पड़ा। इस सवाल का जवाब तो फिलहाल कोई देने को तैयार नहीं है लेकिन यह दर्शाता है कि कांग्रेस में उठापटक चल रही है और इसी उठापटक ने कांग्रेस की सरकार को जिला स्तर पर घेरने की योजना को ही पटक कर उपमंडल स्तर पर सिमटा दिया हो।